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सातित 'सभेतशि५२-२२स ॥ सार
[५४८]
संघपति को मनाने के लिये राजा रामदेव का मंत्री आया। राजा तिलोकचंद
और राजा पृथ्वीसिंह आगे चलते हुए गिरिराज का मार्ग दिखाते थे। पांच कोश की चढाई तय करने पर संघ गिरिराज पर पहुंचा। अच्छे स्थान में डेरा दे कर संघपति ने त्रिकोण कुण्ड में स्नान किया। फिर केशरचंदन के कटोरे और पुष्पमालादि लेकर थूभ की पूजा की। जिनेश्वर की पूजा सब ढूंकों पर करने के बाद समस्त संघ ने कुंअरपाल सोनपाल को तिलक करके संघपति पद दिया। यह शुभ यात्रा वैशाख वदि ११ मंगलवार को सानंद हुई । यहां से दक्षिण दिशि में ज़ंभक ग्राम है जहां भगवान महावीर को केवलज्ञान हुआ था।
गिरिराज से नीचे उतर कर तलहट्टी में डेरा दिया, संघपति ने मिश्रो की परब की। मुकुंदपुर आकर पांचवी कड़ाही दी। वर्षा खूब जोर की हुई। वहांसे अजितपुर आये। राजा पृथ्वीसिंह ने संघ का अच्छा स्वागत किया, संघपति ने भी वस्त्रालंकारादि उत्तम पदार्थों से राजा को संतुष्ट किया। राजा ने कहा यह देश धन्य है जहां बड़े बड़े संघपति तीर्थयात्रा के हेतु आते हैं, मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि अबसे जो संघ आवेंगे उनसे मैं आधा दान (कर) लूंगा। यहांसे चलकर गुम्मा आए । राजा तिलोकचंद को, जिसने मार्ग में अच्छी सेवा की थी सोना चांदी के मुहर रुपये वस्त्रालंकार आदि वस्तुएं प्रचुर परिमाण में दीं।
___ समेतशिखर से राजगृह १२ योजन है, सातवें दिन संघ राजगृह पहुंचा। यहां बाग बगीचे कुंए इत्यादि हैं । राजा श्रेणिक का बनाया हुआ गढ और चारों ओर गरम पानी के कुंण्ड सुशोभित हैं। समतल भूमि में डेरा देकर पहले वैभारगिरि पर चढे । यहां मुनिसुव्रतस्वामी का ५२ जिनालय मंदिर है, पद्मप्रभु, नेमिनाथ, चन्द्रप्रभु, पार्श्वनाथ ऋषभदेव, अजितनाथ अभिनंदन, महावीर प्रभु, विमलनाथ, सुमतिनाथ और सुपार्श्वनाथ स्वामी की फूलों से पूजा की। दूसरे देहरे में मुनिसुव्रतनाथजी की पूजा की। वीरविहार की दक्षिण ओर ११ गणधरों के चरण हैं वहां पूजा की। कई भूमि गृहमें कई काउसग्गिए थे । ईसर देहरे के सामने धन्ना शालिभद्र की ध्यानस्थ बडी प्रतिमाओं को पूजा करके तलहट्टी में उतरे, मिश्री की परख दी। गुणशिल चैत्य शालिभद्र का निर्माल्यकूप, रोहणिया की गुफा आदि बडे हर्षोत्साह से देखा । विपुलगिरि पर चतुर्विशति जिनालय के दर्शन किये । अजितनाथ, चन्द्रप्रभ, पार्श्वनाथ और प्रद्मप्रभ के चार मंदिरों में पूजा की। उसके पास ही जम्बू, मेघकुमार, खंधक आदि मुनियों के चरण हैं। तीसरे पहाड उदयगिरि पर चौमुख मन्दिर के दर्शन किये । फिर रत्नगिरि पर ऋषभदेव और चौवीस जिन के मन्दिरों को वन्दन कर स्वर्णगिरि के देवविमान सदृश जिनालय की पूजा की । राजगृही नगरी में जिनेश्वर के ३ मन्दिरों की पूजा की। संघपति कुंअरपाल की राणी अमृतदे और सोनपाल की राणी काश्मीरदे थी सो यहां
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