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આ ૧૦ ]
શ્રીમદ્ દેવચન્દ્ર ઔર ઉનકી સચિત્ર સ્નાત્રપૂજા [ ४ ]
(२४) इस चित्र में विशाल मिनमन्दिर का भाव बतलाया है। आजु बाजु साधु साध्वी श्रावक श्राविकार्ये दर्शन करते बताये हैं। शिल्पकलाकी दृष्टि से इस चित्र का विशेष महत्व है ।
श्रीमद् देवचन्द्रजी निर्मित स्नात्रपूजा जैनसमाज में कितनी आदरणीय समझी जाती थी और आज भी समझी जाती है-यह उक्त सचित्र प्रति से स्पष्ट हो जाता है। आपकी निर्माण की हुई अध्यात्मगीता की भी सचित्र प्रति मुझे सूरत में देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । स्नात्रपूजा से भी उक गीता चित्रकलाकी दृष्टि से जादा महत्व रखती है । वह रंगीन पत्रों के उपर स्वर्णाक्षरों से लिखी गई है, जो श्रीजिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार के पास सुरक्षित है । इन दोनों सचित्र कृतियों से पाठक सोच सकते हैं कि श्रीमद के प्रन्थों का कितना आदर था ।
उपसंहार - ऊपर मैंने स्मात्रपूजा के चित्रों का यथामति संक्षिप्त वर्णन दिया है । उपलब्ध पूनाओं में यही एक ऐसी पूजा है जो सचित्र है । यद्यपि बरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजीकृत सचित्र पंचकल्याणक पूजा मेरे संग्रह में है पर वह इतनी सुन्दर नहीं है ।
उपरोक्त प्रति की एक और विशेषता यह है कि प्रत्येक चित्र के पास पूजा की गाथाएं अंकित हैं जो पाठान्तरों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रकाशित पूजा में और उक्त पूजा में पाठान्तर विशेष रुपेण पाये जाते हैं जिसपर यथाअवकाश प्रकाश डाला नायगा । इस प्रतिके चौवीस पन्नें हैं। प्रतिका नाप ६”×१०" है। चारों ओर भिन्न भिन्न प्रकार के बेलबूटे बने हुए हैं जिसमें कतिपय पक्षियों का भी समावेश है । यद्यपि प्रति में लेखनकाल अनिर्दिष्ट है तथापि अनुमानतः उन्नीसवीं सताब्दी के अन्तिम चरण की होनी चाहिये। यह चित्रकला राजस्थानी है, कतिपय चित्रों में पहाडी कलम की सूक्ष्म झलक भी मिल जाती है । प्रति को सुरक्षित रखने के लिये चारों ओर अभ्रक का कागन लगा हुका है । इसके चित्र की फोटो कापी मेरे संग्रह में है ।
पूज्य गुरुवर्य उपाध्यायजी श्री श्रीसुखसागरजी महाराज की प्रेरणा से उक्त प्रति ज्योंकि त्यों ब्लाक बनवाकर छपवानेका प्रबन्ध किया जा रहा है। जबलपुर सदरबाजार स्थित यतिवर्य श्री युगादिसागरजी के पास यह प्रति सुरक्षित है। उनसे पूछने पर मालूम हुआ है कि वे इस प्रति को लखनऊ से लाये थे । २० वर्ष से उनके पास है। जैन समानके सामने जो परिचय आ रहा है वह उन्हों के सौहार्द का फल है। मेरे ज्येष्ठ गुरुवर्य मुनिराज श्री मंगलसागरजी का बिना आभार माने नहीं रहा जाता, चूंकि आपने ही मेरा ध्यान इस प्रति की ओर आकर्षित किया था । क्याही अच्छा हो कि ऐसी पूजा हरएक जैन मन्दिर में चित्रित होवे ।
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