SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४७८] શ્રી જેને સત્ય પ્રકાશ [१५७ सिर्फ इनमें जो अछूत जाती है वह मन्दिर के अन्दर नहीं जा सकेंगे । ता. १८-१-४२ को इसी तरह वैष्णवानने अम्बाजीका दर्शन किया। मगर चन्द ढेडोंने जो अछूत जात में शुमार हैं व अम्बावजी के आसपास जो लोह के सलिये का कम्पाउन्ड हैं, उस कम्पाउन्ड के पहले हिस्से के अन्दर जाकर दर्शन लेनेकी कोशिश करने लगे, जो महाजनान की तरफ से रोका गया व इस पर झगडा हुआ । वैष्णवान की तरफ से जो जावाल ठाकुर का बयान कलमबन्द कीया गया है उससे व जैन महाजनान का गवाह अचलो सुनार के बयान से यह बात साफ जाहिर है कि वैष्णवान अम्बावजी का दर्शन करने आते हैं । सिर्फ जो अछूत जात है वह कणिये के कम्पाउन्ड के कतई बाहर से दर्शन करती है. ठाकुर जावाल ने अपने बयान के आखिर हिस्से में फिर यह कहा है के कणीये के अन्दर वो वाघ के पीछे से ढेड दर्शन करते थे. वाघ जिस जगह होना कहा गया है वह जगह EX. A. के नकशे में हमने बतलाई है मगर अब वहां वाघ नहीं है। ताः ८-२--४२ को व फिर आज इस तरह दो दफा हमने मौके को मुआयना कीया. जो वैष्णवान की तरफ से यह कहा गया है, के ढेड लोग या अछेप कणिये के पहिले कम्पाउन्ड में जाकर दर्शन करती थी, यह हम सही नहीं समझते. इसलिए के यह ही लोग इस कम्पाउन्ड के दो हिस्से करते हैं व कहते हैं के सिर्फ कणिये के पीट लगाकर दर्शन करते हैं, आगे कदम को कदम नहीं जा सकते । बयान अचला सुनार हम बिलकुल सही समझते हैं । पुलिस की रिपोर्ट ताः २०--१-४२ को अदालत हाजा में आई उसके तीन रोज पेशतर याने ताः १८ को वैष्णवान ने अम्बावजी का दर्शन किया जिसमें महाजनों की मंजूरी थी, बलके कोई एतराज नहीं कीया. पहले दिखलाए माफिक सिर्फ कणिये के कम्पाउन्ड के पहेले हिस्से में ढेंडों के जानेसे झगडा हुआ लिाः। ब मुजिब दफा १४५-१४८ जा. फो. हम यह करार देते हैं कि अम्बावजी के मन्दिर का कबजा वो पूजा का हक जैन महाजनों का है । वैष्णवान सिर्फ अम्बावजी के दर्शन कर सकते हैं । वैष्णवान में जो अछेप लोग हैं वह मौजूदा तार के कम्पाउन्ड के बाहर से ही दर्शन कर सकेंगे । नकशे ए. में हमने यह कणीये का कम्पाउन्ड लाल पेन्सिल से मार्क किया है । उसके अन्दर वैष्णव अछेप नहीं जा सकेंगे । निज जूते भी कोई For Private And Personal Use Only
SR No.521578
Book TitleJain_Satyaprakash 1942 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1942
Total Pages40
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy