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[ २३४ ] શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ
[१ सातभु कर श्रीजिनचंद्रसूरिजी नामसे प्रसिद्ध किया । आप अति विद्वान् थे । आपने म्लेच्छोपद्रवसे श्रीसंघकी रक्षा की । दिल्ली के मदनपाल राजाको प्रतिबोध दिया व देवताओंको भी प्रतिबोध दिया । और भी अनेक प्राभाविक कार्य किये। महतियाणजातिकी स्थापना की । इनकी विद्वत्प्रतिभाकी एकमात्र कृति ' व्यवस्थाकुलक' है । इनका स्वर्गवास सं. १२२३ के द्वितीय भाद्रपद कृष्ण १४ को दिल्लीनगरमें हुआ। इनके भालस्तलमें मणि थी, इसीसे इन्हें मणिधारोजी कहते हैं । ये दूसरे दादाके नामसे प्रसिद्ध है । आपका चरित्र विशेष जाननेके लिए श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा लिखित 'मणिधारी जिनचंद्रसूरि पुस्तक देखनी चाहिये ।
जिनपतिमूरिः-ये जिनचंदसूरिजीके पाट पर हुए । इनका जन्म सं. १२०५ चैत्र वदी ८ के दिन हुआ। दीक्षा १२१८ फागुण वदि ८ को और आचार्यपद सं. १२२३ कार्तिक सुदी १३ के दिन हुआ । आप भी अति विद्वान थै । आपने हिन्दुसम्राट पृथ्वीराज चौहनकी सभामें चैत्यवासीयों से शास्त्रार्थ कर उन्हें परास्त किया। नेमिचन्द्र भंडारीने अपना पुत्र इन्हें समर्पण किया जो आगे जाकर जिनेश्वरसूरिजीके नामसे प्रसिद्ध हुए । आपका स्वर्गवास सं० १२७७ पाल्हणपुर में हुआ।
उपाध्याय जिनपाल:-चे जिनपतिसूरीजीके शिष्य थे । वे बड़े विद्वान थे। इनकी रचित गुर्वावली एक अत्यन्त महत्त्वको ऐतिहासिक कृती है जो सिंवी जैन ग्रन्थमालाकी ओर से श्रीमान् जिनविजयजी, पुरात्वाचार्य शीघ्र ही प्रकाशित कर प्रकाशमें लानेवाले हैं। ___ मंडारी नेमिचंद्र-आप ओसवाल समाजके प्रथग ग्रंथकार हैं । आप पहले चैत्यवासी थे। फिर सं. १२५३ में श्रीजिनपतिसूरिजी द्वारा खरतरगच्छानुयायी बने । आप विद्वान् थे । आपकी रचित दो कृतीये हैं-षष्टी शतक और दूसरी जिनवल्लभसूरिगुणवर्णन । षष्टीशतक बहुत महत्त्वकी कृति है। इसपर तपागच्छीय, व दिगंबर मत के भागचंद्र तकने वृत्ति बनाइ है और इस कृतीको अपनाया है । विशेष देखे ओसवाल नवयुवक महासम्मेलनमें श्रीनाहटाका लेख ।
जिनेश्वरमरिः-आप जिनपतिसूरिजीके शिष्य थे। आप मसकॉटनिवासी उपर्युक्त भंडारी नेमिचंद्र के पुत्र थे । विद्वान् पिता के विद्वान् पुत्र क्यों न होता ? । आपका जन्म सं. १२४५ मिगशर सुदि ११ को हुवा । आपका जन्मनाम अम्बर था। सं. १२२५ में दीक्षित हो वीरप्रभ नामसे प्रसिद्ध हुए फिर । १२०८ में आचार्यपद पर आसीन हुए। आप भी असाधारण विद्वान थे।
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