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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [33८] શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ [१५ भरतस्यानुजा ब्राह्मी, दीक्षित्वा गुर्षनुग्रहात् । गणिनीपदमार्याणां, सा भेजे पूजिताऽमरैः ॥ आ० प० २४ श्लोक १७५ सुन्दरी चात्तनिर्वदा, तां ब्राह्मीमन्वदीक्षत। अन्ये चान्याश्च संविज्ञा, गुरो प्रावाजिषुस्तदा ।। आ० प० २१ श्लोक १७७ सुलोचना व सुभद्राकी दीक्षा (आ० प० ८७ श्लोक २८८) जिनदत्तार्यकाभ्यणे, श्रेष्ठीभार्या च दीक्षिता ।। उ० ७१, श्लोक २०६ ॥ तथा सीतामहादेवी-पृथिवीसुंदरीयुताः।। देव्यः श्रुतवती क्षांति-निकटे तपसि स्थिताः॥ उ०६८, श्लोक ७१२॥ भगवान महावीरस्वामीके संघके साधु, आर्यिका, श्रापक और श्राधिकाकी संख्या उत्तरपुराण, पर्व ७८ श्लोक ३७१ से ३७९में उल्लिखित है। यहां साधु और आर्यिका छठे गुरुस्थानकवाले स्वीकृत है, श्रावक श्राविका पांचवें गुणस्थानकवाले है और इन गणनामें एलक-क्षुल्लककी संख्या नहीं है। अतः वे श्रावकमें दर्ज माने जाते हैं, जबकि आर्यिका तो छठे गुणस्थानको ही स्थित हैं। आर्याओंमें चन्दना मुख्य है। श्लोक ३७८ । सुव्रता गणिनी, गुणवती आर्या ॥ उ० प० ७६ श्लो० १६५ से १६७ ॥ पंचमआरे की अन्तिक साध्वी सर्वश्री ॥ उ० ५० ७६ श्लो० ४३३॥ आ० जिनसेनके कुछ समकालीन पुन्नारसंघीय आ० द्वि० जिनसेन (शः से० ७०५) ने हरिवंशपुराण बनाया है। इनके रचनाकालमें करीब करीब पकता होने पर भी हरिवंशपुराण और महापुराणके कथनमें भिन्नता स्पष्ट नजर आती है, जैसे किः श्वेताम्बर शास्त्रोंमें भ० ऋषभदेवकी दो पत्नीके नाम हैं सुमंगला और सुनन्दा । जबकि महापुराण प० १५ श्लोक ७० में नाम दिए हैं यशस्वती और सुनन्दा। तथा हरिवंशपुराण सर्ग ९ श्लोक १८ में नाम लिखे हैं-नंदा और सुनन्दा। कीचकके दूसरे भवके लिए भी इन दोनोंमें मतभेद है। सम्भव है कि श्वेताम्बर ग्रन्थोंसे दिगम्बरीय संस्करण करते समय परस्परका एक मिलान न होनेके कारण ऐसी ऐसी गडबड हुई हो। हरिवंशपुराणमें भी राजीमती (प०३ श्लोक १३० से १३४ ), द्रौपदी (६३ । ७८), धनश्री, मित्रश्री, कुन्ती, सुभद्रा (६४ । १३, १४४), ग्यारह अंगकी धारक सुलोचना* (१२ । ५२) वगैरहकी दीक्षाका वर्णन है और आर्यिकाकी संख्या (१०। ५१ से ५८) भी लिखी गई है। इससे पाठक समझ गए होंगे कि महापुराणमें श्वेताम्बर अन्धोसे सहारा लिया है इतना ही नहीं किन्तु कुछ प्रसंग और साहित्य भी उठा लिया है। जयकुमारने १२ और सुलोचनाने ११ अंग पढे। हरि० स० १२ श्लोक ५२। * और और दिगम्बर शास्त्रों में भी स्त्री-दीक्षाके और चारित्रमें नियोंके समानाधिकारके काफी वर्णन हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.521569
Book TitleJain_Satyaprakash 1941 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1941
Total Pages54
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size26 MB
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