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महापुराणका उद्गम [दिगम्बर समाजके एक विराट पुराणकी रचनाके साधन]
__ लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी दिगम्बर साहित्यमें बहत कथाग्रन्थ "महापुराण" है, जिसकी उत्पतिका इतिहास इस प्रकार है----
१. आ. जिनसेनने आदिपुराणके पर्ष ४३ श्लोक ३ पर्यन्त १०३८० श्लोक बनाए, बाद में आपकी मृत्यु हो गई ।
२. आ० गुणभद्रने आदिपुराण के ही शेष १६२० श्लोक बनाए, १२००० श्लोकप्रमाण ४७ पर्वमें आदिनाथपुराण समाप्त हुआ, बादमें ८००० श्लोक प्रमाण उसरपुराण (२३ तीर्थकर व चक्रवर्तिका चरित्र ) भी बनाया।
इन आदिपुराण और उत्तरपुराणके जोडका ही नाम "महापुराण" है जिसकी समाप्ति शक सं. ८२० वि. सं. ९५५में हुई है।
दिगम्बरीय मतानुसार वि. सं. ९५५में न गणधरकृत आगम थे, न पूर्व थे, न दृष्टिवाद था, न दृष्टिपादके तीसरे हिस्सेका तीर्थकर चरित्र था, वि० सं. ३०५में ही तीर्थकर चरित्र विनष्ट हो गए थे, और ये आचार्य भी न सातिशय ज्ञानवाले थे, अतः यहां प्रश्न उठता है कि इन आचार्योंने महापुराणका मसाला कहांसे प्राप्त किया ?
नांच-पडतालके बाद सप्रमाण कहा जाता है कि महापुराणकी रचनामें काणभिक्षुका कथाग्रन्थ (आदि० उत्थानिका श्लोक ५१), कवि परमेश्वर. कृत पुरुचरित्र (आदि० उ० श्लोक ६०; आदि० प्रशस्ति श्लोक १६), आ० नटोलकृत घरांगचरित्र और वाल्मीकी रामायण इत्यादि ग्रन्थोंका सहारा लिया गया है । साफ साफ कहना चाहिए कि आचारांग सूत्र, भाषना. ध्ययन, श्री कल्पसूत्र और आवश्यकनियुक्ति इत्यादि श्वेताम्बरीय साहित्यकी सरासरी नकल कर डाली है।
घरांगचरित्र भी श्वेतांबर ग्रन्थ है और वह उस समयका श्रेष्ठ संस्कृत ग्रन्थ है। देखिए :---
जेहिं कए रमणिज्जे, वरंग-पउमाणचरिय वित्थारे ।। कहवणसलाहणिजे, ते कहणो जडिय-रावेसेणो ।।
आउद्योतनसूरिकृत कुवलयमाला (ई. स. ७७८) १ आ. जिनसेन पांच हुए है'-१. आदिपुराणके कर्ता, २. हरिवंशपुराणके कर्ता, ३. मल्लिषेणाचार्यकी महापुराणप्रशस्तिमें उल्लिखित, ४. हरिवंश पुराणकी प्रशस्तिमें सूचित और ५. सेनगणकी पट्टावलीमें भ० सोमसेनके पट्टधर।
---ग्रन्थपरीक्षा भा० २, पृ० ४७। २ जिनसेनाचार्यपाद-स्मरणाधीनचेतसाम् ।। गुणभद्रभदन्तानां, कृतिरात्मानुशासनम् ॥-आत्मानुशासन, श्लोक २३८
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