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પદ્મપુરાણકી ઉત્પત્તિ
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को जन्मते ही खेत में गाड दी गई । इस पुराण में भामण्डलका कुछ भी जिकर नहीं है ।
पद्मपुराण- जनक की रानीने ही सीता और भामण्डल के युगल को जन्म दिया, भामण्डल देवके उठा लेने के बाद राजा चन्द्रगति के यहां पला । यह भामण्डल सीतासे व्याह करना चाहता था ।
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महाराजा दशरथ अयोध्याका राजा था । उसने रामलक्ष्मणका बनारसका राजपट्ट-युवराजपद दिया । रामचन्द्र बनमें गया, नारदकी करतूत से रावणने रामका रूप लेकर बनारसके जंगलसे ही सीताका हरण किया वगैरह
पद्मपुराण में कैक के कहने से रामलक्ष्मण सीताको बनवास मिला, भरत अयोध्याका राजा बना, दंडकारण्य में खर दूषणके पुत्रका बध और चन्द्ररेखाकी शिकायत के बाद खरदूषणसे युद्ध हुआ । इसी परिस्थिति में रावण ने सीताका हरण किया, यहां जटायु पक्षीका भी प्रसंग वर्णित है वगैरहइसप्रकार महापुराण और पद्मपुराण इन दोनों दिगम्बर जैन ग्रन्थोंकी प्रत्येक बात में धरती और आकाशका अन्तर है, जिससे यह ही मालूम होता है कि यह दोनों ही कथन किसी तरह भी सर्वज्ञभाषित नहीं है" । (२)
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"इन दोनों ही ग्रन्थोंके कथन कुछ अदलबदल कर (वाल्मीकि) रामायणसे ही लिए गए हैं । अर्थात् वाल्मीकि रामायण की कोइ बात तो पद्मपुराण में बदली गई है और कोई महापुराण में, परन्तु शेष कथन दोनों ग्रन्थोंमें रामायणसे ही लिखा गया है । (पु० 17)
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है ।
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पद्म पुराणके इस कथन में जिस लौकिक ग्रन्थका जिकर है वह अति प्राचीन वाल्मीकि रामायण ही हो सकता है ।" ( पृ० II)
"वाल्मीकि रामायणसे ही राम-रावणकी यह कथा जैनग्रन्थोंमें ली गई ( पृ० 117)
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यह बात इन दोनो ग्रन्थोंके मिल जाने से ही पैदा नहीं होती है, बल्कि कोई कोई कथन तो जैनधर्मके बिल्कुल ही खिलाफ पड़ते हैं, जैसे श्री नारद और सिद्धार्थ दो लुल्लक महाराजों के कृत्य, राजा सहस्ररश्मिके पिताका, जो जंघाचारण - ऋद्धिधारी मुनि थे, युद्ध में अपने बेटे के पकड़े जाने पर उसको छुड़ाने के वास्ते आना और रावणके युद्धको प्रशंसा करके अपने बेटेको छुड़वाना आदि। इसी ही प्रकार महापुराण में नारदको ब्रह्मचारी बताते हुए भी उसके बहुत ही खोटे कृत्यका वर्णन करना, फिर भी उसको ऋषि नारद वा मुनि नारद कहना । तो साफ ही सिद्ध कर रहा है कि हिन्दू ऋषि मुनि नारद को ही इन जैन ग्रन्थोंमें जिन छुल्लक वा लैन ब्रह्मचारी बनाया है । परंतु उसके कृत्य वह ही रहने दिए और उसका भेष भी वही बताया जो हिन्दू ग्रन्थों में वर्णन किया गया है । कारण हिन्दू ग्रन्थोंके समान इन जैन ग्रन्थों में भी वह ऋषि लिखा गया है " (पृ० ॥,II) |
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इस ही वा मुनि ही