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મંત્રીશ્વર જયમલજી
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वहां से लाकर नाडोल नगर के रायविहार नामक मंदिर में स्थापित की । इस पद्मप्रभ की प्रतिमा पर इस प्रकार लेख खुदा है
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श्रीपद्मप्रभर्बिवं
॥ ई० ॥ सं. १६८६ वर्षे प्रथमाषाढ व० ५ शुक्रे राजाधिराजश्री गज सिंहप्रदत्तसकलराज्यव्यापाराधिकारेण मं० जेसा सुत मं० जयमल्लजी नाम्ना श्री चन्द्रप्रभविवं कारितं प्रतिष्ठापितं स्वप्रतिष्ठायां श्री जालोर नगरे । प्रतिष्ठितं च तपागच्छाधिराज भ० श्रीहीरविजयसूरिपट्टालंकार भ० श्रीविजय सेनसूरिपट्टालंकार पातशाहि श्री जहांगीर प्रदत्त महातपाविरुदधारक भ० श्री ५ श्रीविजयदेवसूरिभिः स्वपदप्रतिष्ठिताचार्य श्रीविजयसिंह सूरिप्रमुख परिवार परिकरितैः । राणा श्रीजगतसिंहराज्ये नाडुलनगर रायविहारे श्रीपद्मप्रभविबं स्थापितं ॥ x
पद्मप्रभ की प्रतिमा के पास शांतिनाथ की प्रतिमा है, वह भी जयमलजी ने बनवाकर वि. सं. १६८६ प्रथम आषाढ वदि ५ ( ई० सं० १६३० ता० २१ मई ) शुक्रवार को पधराई थी । उस प्रतिमा पर इस प्रकार लेख खुदा है
× ॥ ६० ॥ सं. १६८६ वर्षे प्रथमाषाढ व ५ शुक्रे राजाधिराज जयसिंहजी राज्ये योधपुर नगर वास्तव्य मंणोत्र जैसासुतेन जयमलजीकेन श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं स्वप्रतिष्ठायां । प्रतिष्ठितं च श्री तपागच्छाधिराज भट्टारक (श्री) ५ श्री विजयदेवसूरिभिः स्वपट्टालंकार आचार्यश्री श्री विजयसिंहरिप्रमुख परिवार ( सहितैः )
वि. सं. १६८३ में जयमलजीने शत्रुञ्जय, आबू और गिरनार आदि तीथ की यात्राएं की और संघ निकाले ।
जयमलजी के बारे में जो कुछ ज्ञात हुआ उसीके आधार पर यह लेख लिखा गया है। भविष्य में विद्वत्समाज एवं आपके वंशधरों से नम्र निवेदन है के मंत्री श्री के बारे में विशेष परिशोध कर प्रकाश में लाएगी और मंत्रीश्वर की कीर्तीकौमुदी को बढायेगी और अन्य औसवाल नर-रत्नों के जीवनपर झांकी डालेगी और उनका यश सर्वत्र फैलाएगी ।
* प्रा० जै० लेखसंग्रह भा० २ में प्रकाशित ।
* प्रा० जैन लेख संग्रह भाग २ में प्रकाशित
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