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मंत्रीवर जयमलजी
ले० श्रीयुत हजारीमलजी बांठिया, बीकानेर
राजपुताने की रत्नगर्भा भूमि पर अनेक नरों का जन्म और मरण हुआ है, और होता रहेगा | पर जीवन उन्हीं नर-रत्नों का सार्थक हो सकता है, जिन्होंने अपने देश जाति और धर्म के लिए कुछ कार्य किये हैं । इसी रत्नगर्भा भूमि पर राजपुताने में जोधपुर मारवाड नामक एक प्रसिद्ध रियासत है । यहां पर अन्य नर-रत्नों के साथ साथ ओसवाल नर-- रत्नों क नाम विशेष उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने देश और धर्म के लिए अपने आपको कुरबान कर दिया ।
ऐसे ही नररत्नों में हमारे चरित्रनायक जयमलजी हैं ।
जोधपुर के महाराजा गजसिंह के वक्तके ओसवाल मुत्सद्दियों में मं० जयमलजी का आसन ऊंचा है । आपकी मारवाड राज्य की सेवाएं वहां के पुनीत इतिहास में चिरकाल तक अमर रहेगी । यहां पर आपके जीवनपट पर कुछ झांकी की जा रही है ।
मंत्रीश्वर जयमलजी जेसा के द्वितीय पुत्र, अचला के पौत्र और सूजा के प्रपौत्र थे । आपका जन्म जेसा की धर्मपत्नी जयवंतदे ( जसमादे ) की कुक्षि से वि. सं. १६३८ माघ सुदि ९ बुधवार को हुआ था ।
जयमलजी ओसवाल ज्ञाति के मुंहणीत गोत्र के पुरुष थे । आपकी वंशपरम्परा जोधपुर के राव राठोड सीहा से मिलती है। सीहा का पुत्र आसथान, उसका पुत्र धूहड, उसका पुत्र रायपाल हुआ। रायपाल के तेरह पुत्र हुए, द्वितीय पुत्र मोहनसिंह से मुंहणोत गोत्र की उत्पत्ति हुई । *
राजनैतिक और सैनिक क्षेत्र
वि. सं. १६७२ ( ई. सं. १६१५ ) में फलौदी पर महाराजा सूरसिंहजी का अधिकार हुआ तव मुहणोत जयमलजी वहां के शासक बनाकर भेजे गए । वि. सं. १६७० वैशाख मास ( ई० सं० १६२० ) में जब महाराजा गजसिंहजी के मन्सब में बादशाह जहांगीर ने एक हजार जाट और एक हजार सवारों की तरक्की दी, तो उसकी तनख्वाह में जालौर का परगना उनको मिला । उस समय महाराजा ने जयमलनी को वहां का शासक नियुक्त किया । महाराजा गजसिंहजी ने आपको हवेली, बाग, नौहरा और दो खेत इनायत किये ।
वि. सं. १६८३ ( ई० सं. १६२६ ) में महाराजा गजसिंजी के बडे कुंवर अमरसिंहजी को नागौर मिलने पर जयमलजी नागौर के हाकिम बनाये गये ।
* मुहणोत गोत्र की उत्पत्ति के लिए महाजन वंश मुक्तावलि व ओसवाल समाज का इतिहास देखना चाहिए ।
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