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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंजाब में जनधर्म लेखकः-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी __ (गतांक से क्रमशः ) उ० भानुचन्द्रगणी वि० सं०१६३९ से सं०१६६२ तक पुनः१६७० के करीब) उपाध्याय श्री भानुचन्द्रजी, ये जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरि के उ० सकलचंद्रजी के शिष्य उ० सूरचन्द्रजी के शिष्य हैं। आप कादंबरीवृत्ति वगैरह ग्रन्थोंके निर्माता, शाहजादा जहांगीर, दानीयाल आदि के धर्माध्यापक, समयद्रष्टा उपदेशक और आइन-ई-अकबरीम उल्लिखित सम्राटकी धर्मसभाके अनोखे विद्वान् हैं । आपके उपदेश से सम्राट अकबर ने अनेक धर्मकार्य किये हैं, इनमें से कई कार्य तो पंजाब से ही आदिष्ट हुए हैं और सम्राट अकबरने. जैनधर्मके हितके लिये भिन्न भिन्न फरमान भी यहींसे जारी किए हैं। जैसेकी-शेख अबुलफजलके सहयोग में षट्दर्शन ग्रंथका अध्ययन किया, साधुन्वेषी राय कल्याणमल का अत्याचार दूर किया, सूर्य-सहस्रनाम का पाठ हमेश के लिये जारी रक्खा, सोरठ के कैदिओंको छोड दिये गये । सं० १६४९में लाहोरमें उपाश्रय व मंदिर के निमित्त भूमिप्रदान किया । उसी वर्ष में जहांगीर के वहां मूल नक्षत्र में कन्या का जन्म हुआ, उसकी शांतिके लिये श्रीमान् थानसिंहद्वारा बृहत् शांतिस्नात्र महोत्सव कराया जिसमें वा० मानसिंह औ कर्मचन्द्रजी वगैरह भी सहयोगी थे। __श्रीनगर से शत्रुजय तीर्थ के यात्रिकों का कर (टेक्स) माफ कर दिया। यद्यपि किसी धर्मद्वेषी ने उसमें रोडा लगाया, किन्तु जैनल तालावके किनारेसे पुनः सं. १६४१ में ही शत्रुजयकरमुक्ति का फरमान लिखकर आ. श्री. हीरविजयसूरि को भेज दिया। ___ आ० विजयसेनसूरिजी के करकमलसे उ० भानुचंद्रजीके "उपाध्यायपद" का नंदिमहोत्सव कराया, जिसमें शेख अबुलफजलने दान वितीर्ण किया था सं. १६५३ में आ. श्री. हीरविजयसरिजी के अग्निसंस्कार के स्थान में समाधिमन्दिर-स्तूप बनानेके लिये ऊना (काठिआवाड) में १० बीधा जमीन का दान किया। लाहोरमें हीरन के शिकार के प्रायश्चितमें ५०० गाय का दान किया । आगरा, चिन्तामणि पार्श्वनाणजी के मन्दिर को बडा बनानेके लिये सानुक्लता कर दी। गच्छों को खींचातानीको दबाने के लिये शत्रुजयतीर्थपर हाथीपोल में नया चैत्य बनाने का मनाइहुकम निकाला, और बाद में समय आते ही फरमान निकालकर मनाईहकम को उठादिया और नया मन्दिर बनाने की इजाजत के साथ आ. हीरविजयसूरिजी को यह तीर्थ समर्पित किया। ग्वालियर के किलेकी जिन-प्रतिमाओंका पुनरुद्धार कराया और For Private And Personal Use Only
SR No.521556
Book TitleJain Satyaprakash 1940 04 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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