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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२५] શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ [ र्ष ५ (८) मुनिराज श्री विद्याविजय से सदम्र प्रार्थना है कि सूरीश्वर और सम्राट्र में प्रकाशित ५ फर्मानों की असल नकलों व एक जहांगीर के पत्र का ब्लॉक जुमले छ हों ब्लॉक शीघ्र भिजवाने की कृपा करें, एवं श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा आदि भी थी जिनचन्द्रसूरिजी के फर्मान की असल नकल का ब्लॉक भेज देने की कृपा करें। ताकि सब फर्मान एक ही पुस्तकमें दिए जा सकें। श्री हीरविजयसूरिजी को १२ दिन की अमारि का दिया हुआ फर्मान जो कृपारस कोश में प्रकाशित है वह पूरा पढ़ा जा सके ऐसा ब्लॉक बनवाने की तजवीज की जा रही है । कहीं उसकी कोई पूरी नकल किसी सज्जन के पास उपलब्ध हो तो शीघ्र भेजने की कृपा करें। (९) मेरी पुस्तक में दी हुई फर्मानों की सूची से प्रकट है कि सम्राटू अकबर और जहांगीर द्वारा जैन साधुओं को लगभग २८ फर्मान तो अवश्य ही दिए गए थे, जिनमें से उपर्युक्त केवल आठ ही उपलब्ध हैं । यदि उनके सिवाय अन्य कोई फर्मान या फर्मान की प्रामाणिक नकल कहीं पर भी उपलब्ध हो तो शीघ्र भेजने की कृपा करें, ताकि वह भी साथ में प्रकाशित किया जा सके। शेष मेरे परिश्रामको भी मैं पुस्तककार ही लिखरहा हूं जिसका नाम "तपागच्छ और खरतर गच्छ के इतिहास की सत्यगवेषणा" है। इस पुस्तकसे तो संबंधित बहुतसी सामग्री मेरे पास अनुपलन्ध है अतः विद्वान् मेरी निम्न आवश्यकताओं को शीघ्र पूर्ण करनेका कष्ट करें:(१) श्रीदेवेन्द्रसूरिजी व उन के शिष्य श्रीविद्यानन्दसूरिजी और श्री धर्मघोषसरिजी की कृतियोंकी उपलब्ध सम्पूर्ण प्रशस्तियां। (श्रीदेवेन्द्रसूरिजी की धर्मरत्नप्रकरण वृत्ति की प्रशत्ति और नव्यकर्म ग्रन्थों की स्वोपज्ञ वृत्तियों की प्रशस्तियां मुझे प्राप्त हो चुकी है अतः वे न भेजें ) तपागच्छ की उत्पत्तिसे सम्बन्धित अन्यान्य तत्कालीन ग्रन्थों के उल्लेख व तपागच्छ की लघुशालिक आचार्यों के संबंध की-पट्टावली समुच्चय में प्रकाशित पट्टावलियों के सिवाय की-अन्य पट्टावलियां जो कि चाहे तपागच्छ की किसी शाखा की कयों न हों ? अथवा दूसरे ही किसी गच्छ की कयों न हों। यदि मूल ग्रन्थों या पट्टावलियों के मेजने में संकोच हो तो उस संबंध के विवरणों की अक्षरशः नकल करके भेज दें। (३) श्रीयुत बाबू पूरणचंदजी नाहर के लेख संग्रहों में “तपागच्छ' शब्दसे युक्त सं.२४०१ का सबसे प्राचीन लेख तपागच्छ का उपलब्ध है । यदि इससे प्राचीन कहीं पर कोई लेख छपा हो या किसीके देखने में आया हो तो शीघ्र आक्षरशः नकल उतारकर भेज दें और उसका स्थान भी सूचित करें। (४) श्रीमनिसुंदसूरिजी कृत 'उपदेशरत्नाकर' और श्रीरत्नमंदिरगणि कृत 'उपदेशतरंगिणि' के सिवाय यदि धीमुनिसुंदरसूरिजी कृत कोई उपदेशतरंगिणी ग्रन्थ भी कहींपर उपलब्ध हो तो सूचना दें। (५) तपागच्छ के श्रीमाणिभद्रजी यक्षको उत्पत्ति श्रीहेमविमलसूरिजी या श्रीआ. For Private And Personal Use Only
SR No.521555
Book TitleJain Satyaprakash 1940 03 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1940
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size24 MB
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