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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ॥ १४ ॥ जिनमंदिरथी जिमणई त्रिहुं देवरियां ठाम | महारुद्र महिमा निलो सोमेसर इण नाम ॥ १३ ॥ सुंदिर मंदिर प्रभुतणा सोहि अति अभिराम । झालर संख शब्दज तणा नाटिक ठांमोठा केइक गावई मधुर धुनि केइ वजावर वीण । के करजोडि रह्या उभा तलालीण ॥। १५ ।। अति उछव आठे पहर देखा प्रभु दरबार | चंद चकोर तणी परइ हरखइ हीया मझार ॥ १६ ॥ मेलइ मगसी नाथनइ मलाया छै वृंद लोक | वस्त्र पात्र उषध प्रमुख लाधइ सगला थोक || १७ ॥ [ ५२ के माता के उ मता उलगणा असवार । चतुर पुरष चोका फिरई करई हुस्यांर ( २ ) ॥ १८ ॥ इणपरि मगसिनाथनइ महिमा अति विस्तार | हुकहिं नमतु मानवी ए कोई अवदात ॥ १९ ॥ सांवलीया साहिब तणी गतिमति अलख अपार । ज्ञानविना समजे कवण सदा मछं गार ॥ २० ॥ वामासुत (हुं) ताहरी करूं नीरंतर सेव । करुणा निधी कृपाल छो x जात रुहेसुं हेव ॥ २१ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ढाल - गुढमलार राग ] x x मगसी मंडण सुखकारि तोरा दरसकी बलीहारी । x दरसणदे - तोरै पायनमइ रे बहु प्राणी । गुणगावs इंद्र इंदाणि हो दादा दोल० ॥ १ ॥ स्वेतांबर विवहारिहो दा० तेह श्रावक समकित धारि । पूजइ अनेक प्रकारि हो दा० ॥ २ ॥ केइ श्राविका सुकलिणी पुन्य xx अधिक प्रवाणी हो दा० | केइ विप्रवेद ध्वनिकारी तोरा दरस कि बलीहारि हो दा० ॥ ३ ॥ कइ योगि जंगम संन्यासि ब्रह्मचारि के वनवासि हो दा० । as frees नवइरागि केइ पंडित पवन असासि हो दा० सेवत चरण सदा सुखकारि हो दा० ॥ ४ ॥ વર્ષ ૨ For Private And Personal Use Only केइ विलखइ वनवइरागि इम पूजइ अनेक प्रकारि हो दा० । के अनंत प्रेम अणगारि नारि सेवा अनंत दुहारि हो दा० ॥ ५ ॥
SR No.521551
Book TitleJain Satyaprakash 1939 10 SrNo 51
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1939
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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