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सत्यारा .
ક્રમાંક ૫૦
[ भासि पत्र]
[१५ ५: २] श्री मक्षीजीमंडन पार्श्वनाथ स्तवन संग्राहक--मुनिराज श्री ज्ञानविजयनी
[दुहा मगसी मंडन विनवू सुणिं परम स x x स । सुख संपति आनंद अधिक आपो वंछित आस ॥ १ ॥ x x x वन तार (सा) तरण साचो समरथ देव। तु x x रणी अहि निसी सदा सारई सुरनर सेव ॥ २ ॥ तुज (श)रण शंकट लइ भाजइ भावछि भुंख । रोग (णं)डे गेगी तणा नाशइ दालिन दुरि ॥ ३ ॥ वाट घाट संकट विकट संग वाघ भुइ ठाम । भुत प्रेत वितर तणा टलइ तुज लीधा नाम ॥ ४ ॥ गिर किनर जल थल विषम अग्नि झाल असराल । विषधर नचि(निश्चय)ष उतरह तुज समरण ततकाल ॥ ५ ॥ परत्या(सा) पुरह लोकना आवह संघ अनेक । पुना करो मन भावसु चित्तधरि अधिक विवेक ॥ ६ ॥ चंदन केशर घसी करी चरचह जिनवर अंग । कुशम माल प्रसल (परिमल) अधिक पहिरावई मनी (न) रंग ॥ ७ ॥ द्वारंतर दादा तण वाजई मधुर मृदंग । दोल ददामा दुमबडि भेरि नाद सुचंग ।। ८ ॥ जिन मंदिरथी जिमणे देवरीयां छत्रीश । तिहां पुना प्रभुनी करह नरनारी नगीस ॥ ९ ॥ प्रभुना मंदिर आगलै चोमुख देवल एक । वीतराग बंधा तिहां आनंद अधिक विवेक ॥ १० ।। बलि चौमुखने आगलै रायण रुख उदार । तिहां पगला परमेस तणा भेटा हरष अपार ॥ ११ ॥ रायण तल लगु देहरी नीहां श्री मिनवर पास । नील कंठ मिरपादुन आनंद अधिक डल्लास ॥ १९ ॥
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