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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देश-ग्राम-नगर-क्षेत्राणां बांधनी-पटक अन्वेषक--आचार्य महाराज श्री विजययतीन्द्रसूरिजी स्वर्गीय जैनाचार्य श्रीमद्-विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के संग्रहित श्रीसरस्वति-ज्ञानभंडार का अवलोकन करते हुए यह पट्टक उपलब्ध हुआ है। इसके कुल १६ पृष्ट हैं जो १४ अंगुल लम्बे और ६ अंगुल चौडे है। इसमें कोई पृष्ठ पूरा, कोई पौन और कोई आधा बारीक अक्षरों से लिखा हुआ है। इस पट्टक की बांधनी आचार्य श्रीविजयप्रभसरिजी की आज्ञासे हुई और यह उन्हों को आज्ञा से सं० १७२४ में लिखा गया है। राजा के व्यक्तित्व से राज्य और प्रजा में संगठनबल बढ कर नियमों का पालन व्यवस्थित रूप से होता है और उसकी शिथिलता में सर्वत्र अशान्ति फैल कर सारे नियम अस्त-व्यस्त हो जाते हैं और वह राज्य अस्ताचल का अतिथि बन जाता है। ठीक उसी प्रकार आचार्यों के व्यक्तित्व से समस्त श्रीसंघ व्यवस्थित रह कर उसमें संगठनबल बढता, वास्तविक नियमों का पालन होता और सारणा, वारणा, चोयणा, पड़िचोयणा इन चार सुशिक्षाओं का प्रचार भव्य रीति से होता है और उनकी लापरवाही से वह अव्यवस्थित हो धर्म-कर्म से हाथ धो बैठता है। प्रस्तुत पट्टक इसो वस्तु स्थिति पर प्रकाश डालता है। पाठकों के अवलोकनार्थ हम उसको यहाँ ज्यों का त्यों उद्धृत करे देते हैं। इस पट्टक से साफ मालूम हो सकता है कि विक्रमीय १८ वीं शताब्दी में आचार्यों का व्यक्तित्व कैसा था, वे कितनी दीर्घ दृष्टि रखते थे ? प्रतिदेश ग्राम के संघ के प्रति उनकी कितनी सुंदर हार्दिक लागणी थी? और वे अपने समयवर्ती श्रीसंघ में धार्मिक भावना को सतेज रखने के लिये प्रति गांव नगरों में चतुर्मास करने को साधुओं को नियत करते थे? इसीसे आज की अपेक्षा उस समय श्रावक श्राविका के हृदव-भवन में धार्मिकदृढता. साधओं के प्रति भक्ति-प्रेम और साधर्मिक वात्सल्य विशेष रुप से विलास करता था, अस्तु । प्रस्तुत पट्टक में (१) किस जिले (या विभाग) के किस गांवमें कितने मुनिराज ने चतुर्मास के लिए स्थिरता करनी, (२) दीक्षा देनेके आज्ञापत्रकी नकल, (३) किसी स्थल विशेष में स्थिरता करनेके आज्ञापत्र की नकल, (४) गच्छ का सम्बन्ध विच्छेद करने के आज्ञापत्र की नकल और (५) गच्छ से सम्बन्ध जारी करने के आज्ञापत्र की नकल दि गई है। For Private And Personal Use Only
SR No.521551
Book TitleJain Satyaprakash 1939 10 SrNo 51
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1939
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size21 MB
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