SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १] વિચાર - પત્રકમ ==[१३] शतैर्गुणनीयः । गुणने च जातमेककवलतण्डुलमानं ४०९६०००००, इदं च पृथक स्थाप्यते । एकस्मिश्च मूटके मानकानि६४० स्युः । एकैकस्मिश्च मानके २०००० तण्डुलाः स्युः। यतः पञ्चभिर्माणकैर्जात्यतण्डुलानां लक्षमेकं भवेत् । अतः प्रागुक्तोऽङ्को मूटकसत्कतण्डुळसंख्यया १२८००००० भजनीयः । भागे च लब्धाः ३२, एते एककवलसत्काः ३२ भरतक्षेत्रमूरका जाताः, एते च द्वात्रिंशता गुणयितव्या यतो द्वात्रिंशता कवलैः संपूर्ण आहारो भवेत् , गुणने च जाताः १०२४ एते विदेहसत्कसंपूर्णाहारेण भरतमूटका जायन्ते, इति । अनुवाद-विदेह क्षेत्र में एक पुरुष का भोजन ३२ कवल (ग्रास) का होता है, वहाँ के एक कवल में भरतक्षेत्र के ३२ मूटक होते हैं। विदेहक्षेत्र के एक तंडुल की लम्बाई ४००, चौडाई ६४ और मोटाई ३२ भरतक्षेत्र के तंडुल के बराबर होती है। विदेह-क्षेत्र के एक तंडुल की लम्बाई, चौडाई और मोटाई में भरतक्षेत्र के इतने तंडुल नहीं समा सकते ऐसा नहीं कहा जा सकता, क्यों कि विदेह-क्षेत्रीय तंडुल के मध्य भाग में जहाँ बहुत मोटापन है और कहीं कहीं अपेक्षाकृत कम मोटाई भी है। निश्चयनय के मत से तंडुल में ठीक ठीक लम्बाई, चौडाई आर मोटाई निश्चित नहीं है, तोभी व्यवहारनय के मत से उसकी लम्बाई, चौडाई और मोटाई में भरत-क्षेत्र के उतने तंडल समा जायँगे । व्यवहार से विदेह का तंडुल अपनी लंबाई से ६३ अंश चौडा और १२३ अंश मोटा है। ४०० का सवा छवां हिस्सा ६४ और ४००का साढे बारहवां हिस्सा ३२ होगा। इसका मतलब यह है कि ६४ और ३२ को ६१ से और १२३ से गुणा करने पर ४०० आता है, या ४०० में ६४ तथा ३२ का भाग देने से क्रमसे ६१ और १२३ आता है। इसलिये लम्बाई के ४०० को चौडाई के ६४ से गुणा करने पर २५६०० होते हैं और मोटाई के ३२ से गुणा करने पर ८१९२०० होते हैं, अतः विदेह-क्षेत्र के एक तंडुल में ८१९२०० भरत-क्षेत्र के तंडुल हुए। विदेह-क्षेत्र का एक कवल ५०० तंडुलों का होता है। अतएव ८१९२०० को ५०० से गुणा करने पर भरत-क्षेत्र के ४०९६००००० तंडुल विदेह के एक ग्रास में हुए। एक मूटक ६४० मन का होता है । एक मन में २०००० तंडुल और ५ मन में एक लाख तंडुल होते हैं। इसलिये पूर्वोक्त मूटकसत्क ४०९६००००० संख्या में १२८००००० का भाग देने पर लब्ध-अंक ३२ आया। विदेहक्षेत्रीय पुरुष का एक ग्रास भरत-क्षेत्रीय ३२ मूटक के बराबर होता है। इसलिये विदेहक्षेत्रीय पुरुष के ३२ कवल के संपूर्ण आहार में भरतक्षेत्रीय पुरुष के ३२४३२१०२४ मृटक हुए। विदेहक्षेत्रके पुरुषका मुखपरिणाम मूल-रयणीओ पन्नासं, विदेहवासम्मि वयणपरिमाणं । पत्ततलस्स पमाणं, सत्तरधणुहाइ दीहं तु ॥२॥ For Private And Personal Use Only
SR No.521550
Book TitleJain Satyaprakash 1939 09 SrNo 50
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1939
Total Pages54
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy