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________________ Jain Education International પાંચ પાંડવોં કી ગુફાએ [ २३७ ] चार स्तभ्यों पर अवलम्बित है जिसको रचना प्राकृतिकसी है। हॉल की छत भी डाल उतारवाडी है जिसको देखने से पता लगता है कि यह छत अभी गिरनेवालो है। इसके रंगीन चित्रों में कुछ जानवरों के और कुछ सपारों के चित्र हैं तथा दरबाजे की सजावट गुप्तवंशीव तथा कुशानवंशीय राजाओं के जमाने की सी प्रतीत होता है। इस गुफा की बनावट प्रोस और सीरिया की इमारतों के समान तथा शिल्पकारी मंडलामहल से श्रेष्ठ है । (५) पाँच नम्बर को गुफा के योच का कमरा ९५x४४ फीट लम्बा चौडा दो कतार में बना हुआ है, जिसमें साधारण रंगाई का कार्य है । इसमें सामने का दरवाजा तथा चार खिड़कियों का काम पीछे से बनाया गया है । यह गुफा भी चौथे नम्बर की गुफा की भाँति ही है । (३) उडे नम्बर की गुफा के दरवाजे से आने जाने पर ४६ फोट ममचोरस एक कमरा है, जिसकी दो ते दक्षिण पश्चिमबाली और तीन छते दक्षिण की ओर हैं जिनकी सजावट आदि का कार्य बिल्कुल सादा है, जिसमें कि १६ कमरे हैं। इनकी बनावट को देखने से मालूम पड़ता है कि यह पांचवे नम्बर की गुफा का अनुकरण किया गया है। इसके बाहिर की छत का भाग भी गिर गया है इसलिये इसके सभी कमरे प्रायः दब गये हैं । अवशिष्ट तीन गुफाओं के गिर जाने से उनका हम विवरण लिखने में असमर्थ है, जो कि बिल्कुल भग्नावस्था में पड़ी है। भीतर जाने का कोई साधन नहीं है । उपर्युक्त प्राचीन गुफाएं विन्ध्याचल पर्वत के सिलसिलेवाली पहाड़ीयों में ही हैं, जिनके चारों ओर मानी जंग तथा भीलों की आबादी है। ग्वालियर स्टेट में जब किसी ऑफिर को सजा दी जाती है तो इस जंगली प्रदेश में भेजा जाता है, जोकि ग्वालियर स्टेट का सरदारपुर जिला कहलाता है । आजकल स्टेट भीलों के सुधार की ओर विशेष ध्यान दे रहा है। यहां के जंगलों में कभी कभी शेर और पीते का भय रहता है। इन गुफाओं का निर्माण सरस्वतीनदी के तटवर्ती जेतवला गांव के गन्धकुटी स्थान के बाद हुआ प्रतीत होता है। अजन्ता की कैलाश गुफा और इनमें थोडा ही अन्तर है लेकिन चित्र व शिल्प में ये उससे बढ़ी हुई हैं । अशोक, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, शालिवाहन शक, हूण आदि राजाओं के समय की भारत में कितने ही शिल्पकलाओं के प्रमाण है जो विश्व 2 का आज भी अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं भारत का अतीत 1 उ था जिसकी हजारों वर्षों की प्राचीन ध्वंसावशेष शिल्पकला अभी वो भूगर्भ में ही विश्राम कर रही है, जिनकी खोज के लिये ब्रिटिश सरकार की ओर से विशेष यान दिया जा रहा है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.521539
Book TitleJain Satyaprakash 1938 10 SrNo 39
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size837 KB
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