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________________ [१७२] श्रीन सत्य HIR-विशेषis उत्कालिक-१ दसवेआलिअं, २ कपिआकप्पि, ३ चुल्लकप्पसुअं, ४ महाकप्पसुअं, ५ उषवाइअं, ६ रायपसेणिअं, ७ जीवाभिगमो, ८ पण्णवणा, ९ महापण्णवणा, १० पमायप्पमायं, ११ नंदी, १२ अणुओगदाराई, १३ देविवत्थो, १४ तंदुलवेआलिअं, १५ चंदाविज्झय, १६ सरपण्णत्ति, १७ पोरसिमंडल, १८ मंडलपवेसो, १९ विज्ञाचरणविणिच्छओ, २० गणिविजा, २१ झाणविभत्ती, २२ मरणविभत्ती, २३ आयविसोही, २४ वीतरागसुअं, २५ संलेहणासुअं, २६ विहारकप्पो, २७ चरणविही, २८ आउरपञ्चक्खाणं । पक्खिसूत्र-यद्यपि इस सूत्रके कर्ता व रचनाकालका निश्चित पता नहीं है, फिर भी यह प्राचीन ग्रन्थों में से एक है अतः उसमें उल्लिखित आगमों के संबंध लिखा जाता है: पक्खिसूत्रमें नामनिर्देशका क्रम नंदीसूत्र के समान ही है अतः यहां उसमें निर्दिष्ट सभी ग्रन्थोंके नाम न लिखकर उनसे अतिरिक्त ग्रन्थोंके नाम व क्रममें जो तारतम्य है उसी पर विचार किया जाता है:-- १ उत्कालिक ग्रन्थोंमें 'सरपन्नत्ती' का नाम न होनेले २९ के बदले २८ हैं। २ कालिक प्रन्थोंमें छ नाम अधिक है-सरपण्णती, आसीविसभावणा, दिविविसभावणा, चारण (समण) भावणा, महासुमिणभावना, तेयगतिसम्गाणं । इनमें से सरपन्नत्ती का नाम नंदीमें उत्कालिकमें होनेसे अवशेष ५ अतिरिक्त हैं और नंदीमें कालिकमें उल्लिखित 'धरणोवधाए' का इसमें नाम नहीं है। इस प्रकार पक्खिसूत्रानुसार कालिक श्रुतों की संख्या ३६ होती है । कालिक ३६. उत्कालिक २८ और अंग १२ मिलकर कुल संख्या ७६ होती है । और नंदी के अनुसार कुल संख्या ३१+२९+१२-७२ होती है। यहांतक तो वर्तमान मान्य आगमोंकी संख्या ४५ या उपांगादि भेद की कल्पना नजर नहीं आती। इसके बाद कबसे आगमोंकी संख्या ४५ माने जानी लगी और वह कहां तक ठीक है तथा ४५ आगोंके नामोंमें ७. इनमें से कालिकके नं. ११,१२,१४,१५,१६ से २५ तक तथा उत्कालिक के २,३,४,९,१०,१७,१८,१९,२१,२३,२४,२५,२६,२७ अनुपलब्ध हैं। कालिकके नं. ११ से २१ तक (नं. १९ के अलावा) के आगम स्वतंत्र ग्रन्थ न होकर स्थानांग उल्लिखित 'संखेवितदसा' ग्रन्थ के अध्ययनरूप ही हैं। कालिक के नं. २७ से ३१ तक स्वतंत्र प्रन्थ माने हैं, पर ये पांचों निरयावलिका के ही पांच वर्ग हैं । निरयावलिकाकी आदिमें यही कहा है-'उवंगाणं पंच वग्गा पन्नत्ता-तं जहा-निरयावलिआओ १ कप्पडिसि आओ"२ पुष्फिआओ ३ पुष्कलिआओ हिदआओ ५। www.jainelibrary.org
SR No.521537
Book TitleJain Satyaprakash 1938 08 SrNo 37 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size4 MB
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