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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org म. १०-१] “नमन्ना " माने [38] अथ भगवतो निर्वाणकालस्य पुस्तकादिलिखनादिकालस्य च अन्तरमाह समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सव्वदुक्खपहीणस्स नव वाससयाई विक्कंताइ दसमस्स य वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ । [श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य यावत् सर्वदुःखप्रहीणस्य नव वर्षशतानि व्यतिक्रान्तानि दशमस्य च वर्षशतस्य अयमशीतितम : संवत्सर : कालो गच्छति] अत्र व्याख्यालेश:-कल्पसूत्रस्य पस्तकलिखनकालज्ञापनाय इदं सूत्रं देवधिगणिक्षमाश्रमणैलिखितम् , श्री वीरनिर्वाणादशीत्यधिकनवर्षशतातिक्रमे पुस्तकारूढ : सिद्धान्तो जातस्तदा कल्पोऽपि पुस्तकारूढो जात इति । तथा चोक्तम् वल्लहिपुरंमि नयरे देवडिपमुहसयलसंघेहिं । पुत्थे आगमलिहिओ नवसयअसीआओ वीराओ ॥१॥ | वल्लभीपुरे नगरे देवद्धिप्रमुखसकलसंधै । . पुस्तके आगमो लिखितो नवशताशीतौ वीरात् ॥१॥ ) भावार्थ-कालनी परिहाणिने लईने, विना पुस्तक ग्रन्थो खसबा लाग्या त्यारे वल्लभीपुर (वळा) मां महावीरनिर्वाणथी ९८० में वर्षे देवद्धिगणिक्षमाश्रमण प्रमुखसकलसंघे मळीने कंठस्थ आगम रहेता हता तेने पुस्तकमां लख्या। कदाच लिखितनो अर्थ रचित करवामां आवतो होय तो लेखकने आ गम्भीर भूल सुधारवा वैयाकरण अने व्यवहारज्ञ पुरुषनो परिचय करवानी जरूर छे। दिगम्बरीय जैनेन्द्र व्याकरणनी शब्दार्णवचन्द्रिका नामनी लघुवृत्तिनी प्रतिने प्रान्ते लखेल छ केः “संवत् १७१३ वर्षे कार्तिक सुदि अष्टमी बुधे वाग्वरदेशे...... श्रीकल्याणकीर्तिस्तच्छिष्यब्रह्मतेजःपालेन जैनेन्द्रमहाव्याकरण सवृत्तिकं लिखितं शोधितं च ॥ आमां पण 'लिखित' शब्द छे, हवे लिखितनो अर्थ तो रचित करवामां आवे तो तेनो संवत् १७१३ नो जणावेल छे अने दिगम्बर मान्यता ए छे के आ वृत्तिना रचयिता सोमदेव छे जेओए शक संवत् ११२७ मां रचेल छे. आ बाबतनो पण धुंचवाडो लेखकने छोडे तेम नथी। आगल चालतां लेखक लखे छे केः__ “कल्पसूत्रमें पृ. १७७ पर लिखा है किः- 'यद्यहि मधुमद्यमांसवर्जन यावजीवमस्त्येव तथापि अत्यन्तापवाददशायां ब्राह्यपरिभोगाद्यर्थ कदाचित् ग्रहणेऽपि चतुर्मास्यां सर्वथा निषेध :।" आ पाठ कल्पसूत्रनो छे एम समजाववा लेखके आडम्बर करेल छे, परंतु आ पाठ कल्पसूत्रनो छ ज नहि, किन्तु कल्पसूत्र परनी अनेक टीका पैकीनी सुबोधिका नामनी टोकानो छ । टीकाकार महर्षिए 'कदाचित् ' अने 'अपि' शब्द मुकीने ध्वनित करेल छे के उत्सर्ग विनानो अपवाद अने For Private And Personal Use Only
SR No.521532
Book TitleJain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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