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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જન સત્ય પ્રકાશ [43 अपवाद विनानो उत्सर्ग होई शकतो नथी ए नियमानुसार बाह्य परिभोगने अर्थ कदाचित् ग्रहण करातुं होय तो पण चोमासामां तो तेनो सर्वथा निषेध ज समजवो। आ बाबतनुं सविस्तर विवेचन प्रमाण पुरस्सर अमो प्रथम 'करी आव्या छीए, त्यांथी वाचकवर्ग जोई लेवं. ___ आगल चालतां लेखक अमने उद्देशीने जणावे छे के:- विजयलावण्यसरिए कल्पसूत्रना विधानने पुष्ट करवानुं जध्येय राग्वेल छे अने आ ध्येयनी पूर्ति माटे भावप्रकाश आदि ग्रन्थोनां प्रमाणो पण आप्यां छे । आना उत्तरमा जणाववान जे परम पावन कल्पसूत्र स्वत:प्रमाणपुष्ट ज छे. फक्त अजितकुमारजोए खाटो भम्रणा उत्पन्न करी हती तेने माटे अमारे अनेक प्रकारे व्याख्यान बतावq पडयु हप्तुं. टीकाकार महाराजना एक प्रकारना व्याख्यान पर अजितकुमारजीए आक्षेप करता जणावेल हतुं के मांस बाह्य उपयोगमा आवतुं ज नथी. आ वात भूल भरेली छे ते जणाववा पुरता भावप्रकाशादिना पाठो आपवा पड्या हता। आ बधु अजितकुमारजीने आभारी छ। ___ आगल चालतां लेखक जणावे छे के “जोहिंसा जिस कार्यमें होती है, जैन साधु उस कार्यको नहि कर सकता। यदि जानते बुझते भी वह जीवहिंसा करता है तो वह जैन साधु नहि कहला सकता।" आना प्रत्युत्तरमा जणाववान जे आ वातमां कोईनो मतभेद होई शके नहि, परन्तु अपवाद दशामां विशेष लाभनी परिस्थितिए उपर्युक्त वातने विश्रान्ती आपवी पडे छे । एकान्त ज जो मानी लेवामां आवे तो चोमासामां भूमि जीवाकूल होवाथी विहारमां हिंसा थाय छे एम जाणनार तमारा दिगम्बर साधुने 'अपवाद दर्शाये कारणे चोमासामा विहार अवश्य करवो' एवा दिगम्बर शास्त्रीय वचनने आधारे विहार करवामां शाधुता रहेशे के केम ते लेखकने विचारQ पडशे । आगळ चालतां लेखक 'अपवाद' मार्गने बाना तरिके प्रतिपादन करे छे, परंतु लेखकने उत्सर्ग अपवादनी गुंथणी कोई सद्गुरु पासे शीखवानी आवश्यकता छ । दिगम्बरदर्शने अनेक स्थळे अपवाद बताव्या छे. तेलुं ज नहि परंतु अपवाद सिवायनो उत्सर्ग होई शकतो ज नथी. अपवाद सिवायनो उत्सर्ग माननार स्यावाद दर्शन पर कुठाराघात करे छे, त्यां सुधी लखी गया छे. अने आमां मांसना अपवादनो पण समावेश थई शके छे। मांस शब्दनो सर्थ पुरगल या वनस्पति विशेष थाय छे. आ चर्चावाळो पाठ हजु अमारी तरफथी बहार चर्चामां आवेल नथी, छतां ते चर्चामां कल्पसूत्रना पाठनी चर्चाने नाखो जैनध्वजना लेखक चरनदासजी तथा अमोने परस्पर अफळाववानी भेदी रमत खेली पोते खसी जवानी चालाकी खेली छे. परंतु आ तेमनी दुर्बताने ज प्रगट करे छे. For Private And Personal Use Only
SR No.521532
Book TitleJain Satyaprakash 1938 05 06 SrNo 34 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size16 MB
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