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લક્ષમણિ તીર્થ
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पद्मप्रभप्रभु के बांये तरफ के जिनालय में स्थापित आदिनाथजी की मूर्ति जो २७ इंची बड़ी है और उसके आसपास ऋषभदेव की १३-१३ इंची बड़ी दो एवं तीनों मूर्तियाँ छःसौ चोवीस वर्ष की पुरानी है। इनको प्राग्वाट्ज्ञातीय ( पोरवाड़ ) मंत्री गोसल के वंशज मंत्री पदम की भार्या मांगलीने बनवा के प्रतिष्ठा कराई, ऐसा आदिनाथ के लेख से जान पड़ता है। ये प्रतिमा भी बडी सुन्दर हैं । शेष मूर्तियों पर लेख नहीं है, परन्तु उनकी बनावट से पता चलता है कि विक्रम की १२ वीं शताब्दी की बनवाई होंगी । इनमें अजितनाथ की मूर्ति जो १५ इंची बड़ी है, वेलु पाषाण की है और वह बहुत पुरातन मालूम होती है।
धातुमय श्रीपार्श्वनाथ की मूर्ति जो चार अंगुल बड़ी है, उसके पृष्ठी भाग के 'सं० १३०३ आ० सु०४ ललितसा०' इस लेख से छः सौ एकानवे वर्ष की पुरानी है और उसके भराने-बनवानेवाले ललितशाह शाहूकार हैं।
एक सुन्दर परिकर तोरण जिसमें प्रभुमूर्ति नहीं है और जो आकर्षक नक्शीवाला है, प्रभु बैठक के नीचे एक देवी, उसके दोनों बगल में हाथी, उपरि विभाग में छत्र और प्रभु के दोनों तरफ चमर सह इन्द्र इसमें उत्कीर्ण हैं। इसके लेख से पता लगता है कि यह सातसौ छप्पन वर्ष का पुराना है. और इसको बनवानेवाले माधव, केशव भल्लु, मंत्रीवर हैं जो महाजन थे।
विक्रम संवत् १४२७ के मगसर महीने में जयानन्द नामक जैनमुनिने अपने गुरु के साथ नेमाड प्रान्तीय जैनतीर्थों की यात्रा की। उनके स्मारक रूप में उन्होंने दो गीतिका छन्दों में ' नेमाड़ प्रवास गीतिका' बनाई ।
३ " संवत् १३७० वर्षे माघ मुदि ५ सोमदिने प्राग्वाटज्ञातीय मंत्री गोसल, तस्य चि० मंत्री आलिगदेव, तस्य पुत्र गंगदेव, तस्य पत्नी गांगदेवी, तस्याः पुत्र मंत्री पदम, तस्य भार्या मांगल्या प्र०।" इस लेख में प्रतिष्ठाकार और गाँव का नाम नहीं है।
४ “ संवत् १२३८ फागुणसुदि २ चन्द्रे प्रति० श्रीचद्रराज प्र० अन्वय सुथण सा० भ० अक्षय सु० महं० चंडसेण-मणि-पदमसेणादि महं० पोपसिंह मं० माधव मं० केशव मं० भल्लुना प्र०।
यह लेख पडिमात्रा में है और इसमें प्रतिष्ठाकारक आचार्य तथा गांवका नाम नहीं है।
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