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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [२९२] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष 3 गीतिकाकारने अनूपदेश ( नेमाड़ प्रान्त ) के मांडू, तारापुर, सिंगाणा, तालनपुर, नानपुर, चिकलीढोला और लखमणी इन सात स्थानों का प्राचीन परिचय दिया है । परन्तु वर्त्तमान में मांडू, तालनपुर और नानपुर में एक एक जिनालय है । उनमें मांडू के सिवाय के जिनालय प्राचीन नहीं, अर्वाचीन है । प्राचीनता के विषय में मांडू के बाद दूसरा नम्बर खमणी का है । इस समय यहाँ दो दो मील चोरस जमीन पर अनेक जिनालयों के खण्डहर धरोहर रूप में पड़े दिखाई देते हैं जो इसकी पूर्वकालीन जाहोजलाली के अस्तित्व को अद्यापि पर्यन्त बतला रहे हैं । ता. २९-१०-३२ के दिन यहाँ बालुभीलाला के खेत म श्रीपद्मप्रभस्वामी आदि की चौदह जिनप्रतिमा प्रगट हुई थीं, जो बड़ी सुन्दर और सर्वाङ्गावयव परिपूर्ण हैं । इनमें श्रीमहावीर भगवान की प्रतिमा उसके चिह्नों से परमार्हत राजा सम्प्रति के समय की प्रतीत होती है । अतएव यह निर्विवाद कहा जा सकता है कि श्रीलक्ष्मणपुर जैनतीर्थ दो हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है । यहाँ पर एक विशाल जिनालय का आलीराजपुर जैनसंघ के तरफ से जीर्णोद्धार कराया गया है जो लम्बाई में १२० फुट, चौड़ाई में ५० फुट और ऊंचाई में ३५ फुट के अन्दाजन है । इसमें सं० १९९४ मगसरसुदि १० सोमवार के दिन सविधि प्रतिष्ठा होकर भूनिर्गत जिनप्रतिमाएँ विराजमान हो चुकी है - जिनमें तीर्थपति मूलनायक श्रीपद्मप्रभस्वामी की प्रतिमा विक्रमाब्द १०९३ वैशाखसुदि७ और शेष श्री आदिनाथ आदि की १३७० माघसुदि ५ सोमवार की प्रतिष्ठित हैं । इन प्रतिमाओ के प्रतिष्ठाकर कौन जैनाचार्य हैं ? - यह अभी खोज पर निर्भर है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालवदेशीय तीर्थों में मगसी पार्श्वनाथ का विशाल सौध शिखरी जिनालय मांडू के धनकुबेर संग्रामसिंह सोनी का बनवाया हुआ है । कुकडेसर का दिव्य जिनमंदिर श्रीपार्श्वनाथ की छद्मावस्था के समय का बना माना जाता है । वही पार्श्वनाथ का विक्रमीय ९वीं शताब्दी का और पासली का १२वीं शताब्दी के आसपास का बना मालूम होता है । सेमलिया शान्तिनाथ का जिनालय एक यतिजी कहीं से उड़ा कर लाये हैं ऐसी किम्वदन्ति है । इसके सामने के चार थंभों से भाद्रवासुदि २ के दिन पहले दूधसा पानी निकलता था और अब केवल अत्यल्प जल ही निकलता है, यही इसका प्रभाव है । Paras प्रान्तीय तीर्थस्थानों में वर्त्तमान में श्रीकेसरियाजी के अलावा बडोदा विशेष पुराना तीर्थ है। कहा जाता है कि केशरियानाथ की प्रभावशालिनी जिनप्रतिमा प्रथम यहीं प्रगट हो, बाद धूले वगाँव में प्रगट हुई थी, उसके स्मारक रूप में यहाँ गाँव से थोडी दूर पीपलवृक्ष के नीचे चरण स्थापित हैं । यहाँ पर गाँव के बाजार में अति उत्तुंग कुरशी और शिखरवाला जिनालय विक्रम की ९वीं शताब्दी का बना हुआ है जो For Private And Personal Use Only
SR No.521529
Book TitleJain Satyaprakash 1938 02 SrNo 31
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1938
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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