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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५] દિગબર શાસ્ત્ર કંસે બને ? (पृ०) “ इन दोनों ही ग्रन्थोंके कथन कुछ अदलबदल कर (वाल्मीकि) रामायण से ही लिये गये हैं ++शेष कथन दोनों ग्रन्थों में रामायणसे ही लिया गया है" (पृ० )।“वाल्मीक-रामायणसे ही राम-रावण की यह कथा दि. जैन ग्रन्थों में ली गई है” (पृ० ॥a)। ता. ५ अगस्त सन् १९९८ में लिखी पद्मपुराण समीक्षा की भूमिका । ___ यह मानना अनिवार्य है कि-आ. जिनसेन और आ. गुणभद्रने प्राचीन श्वेताम्बर जैनग्रन्थ तथा अजैन ग्रन्थोंके सहारेसे बृहदूकाय महापुराण कीया और दिगम्बर समाजको बडे कथानुयोग का प्रदानकरके ऋणी बनाया। (क्रमशः) [ पृष्ठ १८६का अनुसंधान ] बीकानेर पधारे। करमसी शाह के आग्रह से केरिणी चौमासा करके जेसलमेर पधारे। ___ सा. अर्जुनमाल्हूने प्रवेशोत्सव किया । नंदी स्थापन कर कर्मसी शाहने चतुर्थव्रत अङ्गीकार किया। जेसलमेर चातुर्मास कर पालो पधारे। संघपति जूठा कारित चैत्यकी प्रतिष्ठा की। नगरशेठ नेताने गुरुश्रीको वन्दन किया। चातुर्माल पाटण किया। वहाँसे अमदाबादो संघके आग्रह से वहाँ चातुर्मास किया। अनेकोंको पाठक, वाचकपद एवं दीक्षा प्रदान की। इससे पूर्व अम्बिका देवीने प्रत्यक्ष हो कर “आपको भट्टारक पद पांचवे वर्ष प्राप्त होगा" ऐसी भविष्यवाणी की थी वह एवं अन्य पचास बोल फलीभूत हुए । अम्बिका हाजिर रहकर आपको सानिध्य करती थी। जयतिहुअण के स्मरण से धरणेन्द्रने 'आजसे चौथे वर्ष फागुण सुदि को आप भट्टारक पद पाओगे' ऐसा कहा था। श्री जिनसिंहमूरिजी के स्वर्गवास की सूचना तीन दिन पूर्व आपको ज्ञात हो गई थी। बाल्यावस्था में भी अम्बिकाने थिराद और सावोर के बीच में एक परचा पूर्ण किया था । अपने कथनानुसार गच्छ पहरावणी, ६३६००० ग्रन्थ भंडारमें रखना, ५०० उपवास करना आदि कार्य सम्पन्न किए। सं. १६८१ राखी पूनम के दिन जेसलमेर में युगप्रधान श्री जिनचन्द्रमूरिजी के शिष्य पं. सकलचंद्रगणि के शिष्य उपाध्याय समयसुन्दर के शिष्य वादीराज हर्षनन्दन के शिष्य पं० जयकीर्ति ने प्रस्तुत काव्य रचकर संपूर्ण किया। ऐसे ऐतिहासिक रास जैन भण्डारों में अद्यावधि सेंकडों अप्रकाशित पडे हैं। उन्हें शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित करने के निवेदन के साथ इस लेख को समाप्त किया जाता है। समाप्त. -समयसुन्दरजी और हर्षनन्दनजीका परिचय देखें “युगप्रधान जिनचंद्रसूरि" पृ० १६७ से १७१ तक. जयकोति कृत पृथ्वीराज वेलि बालाववोध उपलब्ध है। For Private And Personal Use Only
SR No.521527
Book TitleJain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages42
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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