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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षाभ्रमाविष्करण [याने दिगंबर मतानुयायी अजितकुमार शास्त्रीए "श्वेतांबर मत समीक्षा"मां आळेखेल प्रश्ननो प्रत्युत्तर] लेखकः-आचार्य महाराज श्रीमद् विजयलावण्यसूरिजी साधु क्या कभी मांस भक्षण भी करे ? (क्रमांक २७ थी चालु) आ प्रश्न लखता लेखके श्वेताम्बर दर्शन पर कुठाराघात करी हार्दिक वृत्तिने ठलवी छे, एटलु ज नहि परन्तु समय जैनदर्शनने दोषावर्तमां दोरवानी बालिशता सेवी छे. अस्तु ! आ प्रश्ननी पीठिकाना चणतरमा लेखके गोठवेली एक इंट"विना मांसत्यागके जैनधर्म धारण नहीं किया जाय" आनो वाक्यार्थ कांइक परीक्षा मागे छे. माटे प्रथम तेनी विचारसृष्टिना कतिपय भागने अवगाहीए. जैनत्वनो दावो धरावनार मानवी पासे ओछामां ओछु सम्यग्दर्शन रत्न तो होवू जोइए, अत एव सम्यग्दर्शन जैनत्वचें मूल छे एम विना संकोचे मानवू पडशे. परन्तु विरति ज नहि. कारणके गुणस्थानकनी श्रेणिना चतुर्थ सोपान पर रहेला भव्य गणनी पासे विरति नहि होवा छतां ते सम्यग्दर्शन विभूतिने लइने जैन होवानो दावी धरावी शके छे. आ प्रस्तुत अर्थने जैन शब्दनी व्युत्पत्ति पण पूरी सहकार आपे छे. 'जिनो देवता यस्य स जैनः', जिनेश्वरने ज देव तरीके मान्य करनार घ्यक्ति जैन कहेवाय छे. आ मान्यतानो समवतार सम्यग्दर्शनमां थाय छे. आ सम्यग्दर्शन गुण अनन्तानुबन्धिना कषायनी चतुष्टयीना अने दर्शनमोहनीयना क्षयोपशमादिकने आभारी छे. त्यारे बीजी बाजु दृष्टिपात करीए तो विरति गुण अप्रत्याखानादि द्वादश कषायना क्षयोपशमादिकने आभारी छे, जेनां कारणो भिन्न छ, जेनुं स्वरूप भिन्न छे, जेनां फलादिकमां विशेषता छे. एवी भिन्न स्वभाववाळी बे वस्तुमां अमुक एकना अभावे अपरनो अभाव प्रदर्शित करवो ते मृत्तिकाना अभावे पटोत्पत्तिना निषेध सरखो छे. __ प्रस्तुतमां मांसत्याग ‘मांसविरति' द्वादश कषायना क्षयोपशमादिकने अधीन छे त्यारे जैनत्व तद्व्यतिरिक्त कारणनी गवेषणा करे छे. माटे भांसविरतिना अभावे जैनत्वनो एकान्त अभाव बताववो ते कपोलकल्पनाने आभारी छे. यद्यपि एटलुं तो साक्षरने अक्षरशः स्वीकारवू पडशे के For Private And Personal Use Only
SR No.521527
Book TitleJain Satyaprakash 1937 12 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages42
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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