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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१३१] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [५५३ आपके स्वहस्तलिखित कई पत्र हमारे संग्रहमें विद्यमान हैं। संक्षेपमें इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि आप एक असाधारण प्रतिभा संपन्न उत्तम कवि, कुशल टीकाकार और समर्थ जैनाचार्य थे । प्रतिष्ठाएं तो आपने जितनी की हैं उतनी आपके पश्चात् शायद ही किसीने की हो । सं. १६८६ में आपके लघु गुरु-भ्राता आचार्य श्री जिनसागरसूरिजी आपसे अलग होगए । रासकार जयकीर्ति भी इसके बाद उनकी आज्ञामें रहने लगे । यदि यह गच्छ-भेद नहीं होता तो श्री जिनराजसरिजीका प्रभाव और भी विशेष विकसित होता । प्रस्तुत दोनों रास रचना के पश्चात् श्री जिनसिंहसरिजी लगभग २० वर्ष और श्री जिनराजसूरिजी भी १९ वर्ष तक जीवित रहे थे । इस अरसे में उन्होंने और भी अनेक शासन प्रभावना और महत्त्वशाली कार्य-कलाप किए होंगे पर इनके पीछेके रचित सम्पूर्ण जीवनीमय कोई रास अद्यावधि उपलब्ध नहीं हुए । अतएव अन्य साधनोंके आधारसे लिखने पर भी शृङ्खलाबद्ध और पूर्ण जीवनचरित्र नहीं लिखा जा सकता । श्री जिनसिंहसरि रास-सार कवि सर्व प्रथम शान्तिनाथ भगवान, सरस्वती और जिनचंद्रसरिजी को नमस्कारकर श्री जिनसिंहमूरिजीका रास रचता है। मारवाड़ के वीटावास नगर में चोपड़ा गोत्रीय चांपासाह नामक श्रेष्टि निवास करते थे । उनको शीलवती भार्या चांपलदेवीको कुक्षिसे शुभ स्वप्न सूचित पुत्र जन्मा । मातापिताने उत्सवपूर्वक मानसिंह नामकरण किया। कुमार क्रमशः बढने लगे। एकवार युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसरिजी उस नगर में पधारे । सरिमहाराज का उपदेश श्रवण कर मानसिंहजी को वैराग्य उत्पन्न हुआ, मातापितासे आज्ञा प्राप्त कर सूरि-महाराज के पास पंच महाव्रत धारण किए (दीक्षा नाम महिमराज रखा), सरिजी के पास आगम, तर्क-न्याय, व्याकरण पढकर विद्वान हुए। मूरिजीने जेसलमेर में उन्हें वाचक पदसे अलङ्कत किया । वाचकजी गुजरात देशके पाटण नगर में पधारे, संघ हर्षित हुआ। x v x x x अहमदाबाद और खम्भात चातुर्मास करके संघपति सोमजी ने संघ सहित तीर्थाधिराज शत्रुजयकी यात्रा की। सम्राट अकबर समस्त धर्माचार्यों को बुलाकर धर्मश्रवण किया करता, अन्य धर्मी विद्वानोंके उपदेशसे चित्त सन्तुष्ट न हानेसे श्रीजिनचन्दसूरिजीका नाम श्रवण कर उन्हें बुलाने के लिए फरमान पत्र भेजे । सूरिजी भी लाभ जान कर लाहोर पधारे। सरिजीका आगमन सुन स्वागतके लिए सम्राटने सैन्य सहित खान, प्रधान, बजीरोंको सामने भेजा । मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रने समारोहसे प्रवेशोत्सव किया । जब सूरिजोने ड्योढी में प्रवेश For Private And Personal Use Only
SR No.521526
Book TitleJain Satyaprakash 1937 11 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size19 MB
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