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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [443 तारापुर नामक दरवाजे को पार कर पहाडी का धाटीवाला खुश्की रास्ता चलना पड़ता है। इस रास्ते पर पैदल ही जाने में सुभिता है, सवारी के लिये घोडा जा सकता है, लेकिन रास्ते की कुशादगी के सबब घोडा भी मुश्किल से उतर सकता है। ये दोढाई मील रास्ता तै करने के बाद पहाड की तलहटी समाप्त होती है, वहां पर एक पानी का टांका (कुंड ) सुन्दर बना हुवा बाई तर्फ रास्ते को नजदीक पर है । पथिकों को घाटी उतरते ही यह पानी की विश्राम भूमि है। यहां से आगे करीब दोढाई मील चलने पर दाहिनी तरफ रास्ते पर ही एक पानी का कुंड आता है जो अति सुन्दर बना है। इसका एक तरफ का हिस्सा टूट फूट गया है । इसके अंदर उतरने के साथ ही दाहिनी तरफ एक शिलालेख लगा हुवा है उसकी नकल आगे के अंक में प्रकाशित करेंगे, परंतु इतना मालूम कर देना जरूरी है कि यह कुंड उक्त मंदिर बनानेवाले गोपाल ने ही बनाया और सूर्यकुंड नाम रक्खा। वहां से करीब आधे मील की दूरीपर तारापुर गांव एक छोटे व कुछ ऊंचाईवाले टेकरे परे बसा है। पचीस तीस घरों की आबादी व भीलाला ज्ञाति के लोग रहते हैं। इस गांव के नजदीक पूर्व तरफ एक जैन मंदिर बना हुवा है जिसका द्वार उत्तर दिशा में है। शुरु द्वार के आसपास ओटले बने हैं जिस पर पत्थर के खंभेवाली चांदनी (छत ) पक्की बनी है। इस ओटले के पूर्वी, पश्चिमी दिवार में दो ताख (गोख) बने हुवे हैं। पूर्वी ताख में सिद्धचक्र, समवसरण वगैरह की रचना काले पाषाण में खुदी हुई है । टूट फूट व घिसजाने की वजह जीर्ण हो गई है । इस ओटले पर उत्तरी दिवार में एक शिलालेख जिसकी लंबाई २०॥ इंच व ऊंचाई १४॥ इंच की है, सोला पंक्तियों में उक्त शिलालेख लिखा हुवा है; जिसकी नकल हमने ता. २१ जनवरी सन १९३७ को ली। शुरू द्वार में प्रवेश करते सभामंडप (रंगमंडप) अंदर बना है, जिस की लंबाइ चौडाई १८x१८ फुट की चौरसाई के करीब है। इस सभामंडप की ऊपरी छत के बीचको पोलाई में.लाल पाषाण की १२ पुतलिये नृत्य, वादन, वगैरह आकार को अति सुन्दर लगी हुई है। एक पुतली टूट जाने से खाली जगह है। इसी शुरू द्वार के उत्तरंग के ऊपर कुंभकलश निकले हैं। सभामंडप के बाद मूल गंभारे में प्रवेश के लिये तीन द्वार बने हैं। बीच के मुख्य द्वार के उत्तरंग के ऊपर श्री जिनेश्वर की पद्मासनवाली मूर्ति व कुंभकलश व देवियों की मूर्तियें हैं । आसपास के द्वार के उत्तरंग पर गणपती व कुंभकलश का आकार है । मूल गंभारे के अंदर लाल पाषाण की वेदी पूर्व से पश्चिम के दीवार तक लंबी बनी है, जिस पर उस वक्त दस बारह प्रतिमा स्थापित हेांगी, इस वक्त खाली है। इस वेदी के पास पूर्वी पश्चिमी दिवार में दो गोख बने हैं, जिनके तोरण आकार के बीच में जिनबिंब निकले हुवे हैं । इस मंदिर की पूर्वी दीवार का हिस्सा टूट फूट For Private And Personal Use Only
SR No.521524
Book TitleJain_Satyaprakash 1937 08 SrNo 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages62
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size29 MB
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