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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१४] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष 3 __प्रो० ए. एम्० उपाध्ये M. A. लिखते हैं कि -" वीरसेनकृत धवला टीका जगत्तुंग के राज्य में (७४९ से ८०८ ) समाप्त हुई है। उसकी प्रशस्ति में समय दिया गया है, किन्तु सोलापुर की प्रति में वे श्लोक बिल्कुल बिगड गये हैं । धवलाटीका में अनेक स्थलों पर वीरसेन ने अकलंक के राजवार्तिक से लम्बे लम्बे चुनिन्दा वाक्य उद्धृत किये हैं।" वगैरह । -जैनदर्शन, व० ४ अं० ९, पृष्ठ-३८९ श्री० उपाध्ये के मतानुसार धवला की रचना आ० अकलंक के “ राजवार्तिक " के बाद की है। आ० अकलंक का समय डॉ. सतीशचन्द्र विद्याभूषण आदि के निर्णयानुसार शकाब्द ७५० यानी विक्रमाब्द ८८५ के करिब का है और प्रो० उपाध्ये के मतानुसार वि० सं० ७०० के करिब का है। --(जैनदर्शन, पृ० ३८९) प्रो० उपाध्ये ने धवला का रचना-समय ७९४ से ८०८ लिखा है, यह गलती है । श्रीमान् जुगलकिशोरजी मुख्तार ने भी धवलग्रंथ की समाप्ति शकाब्द ७३८ में मानी है (स्वा० स० पृ० १७४) । असल ग्रंथ का दर्शन नसीब न होने के कारण ही वर्षनिर्णय में ऐसा मतभेद हो सकता है। आ० वीरसेन के पांच शिष्यों के नाम मिले हैं ।-(विद्वद्रत्नमाला, पृ० १६ ) १. विनयसेन-इनके शिष्य कुमारसेन से वि० सं० ७५३ में काष्ठासंघ का -आ० देवसेनकृत दर्शनसार, गाथा ३९-४० इनके कहने से आ० जिनसेन ने “ पार्श्वभ्युदय" काव्य बनाया है (पा० श्लो० ७१) २. जयसेन----इन्होंने जयधवला की अनुपूर्ति की है। आ० जिनसेन ने इनसे श्रुतज्ञान प्राप्त किया है। --( आदिपुराण की उत्थानिका, श्लोक ५८ या ५९) ३. जिनसेन-~-इन्हींने पार्श्वभ्युदय काव्य और आदिपुराण का निर्माण किया । आ० गुणभद्र इन्हींके शिष्य है, जिन्हेांने उत्तरपुराण वगैरह ग्रन्थ बनाये । ___* श्रीमान् प्रेमीजी का मत है कि-आ. देवसेनजी ने, यहां संवत् लिखने में गलती की है । वास्तव में यहां वि० सं० ७५३ के स्थान पर शकाब्द ७५३ होना चाहिए (विद्वदूरत्नमाला पृ. ३७) या काष्ठासंघ के विधाता विनयसेन के शिष्य से भिन्न कोई दूसरा कुमारसेन होना चाहिय । ---जैनग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय प्रकाशित दर्शनसार प्रथमावृत्ति प्रस्तावना पृ. ३९-४० For Private And Personal Use Only
SR No.521524
Book TitleJain_Satyaprakash 1937 08 SrNo 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages62
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size29 MB
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