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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
વૈશાખ शरीरना बंधारणमां पण घी अधुराश छे, जेने अंगे बन्धारणनी विशिष्टता जणावनार दाढीना, मूछना, काखना के बस्तिना रुंबाटां पण आव्यां होतां नथी । जेम बगीचाना कोमळ छोडवा वर्षाद मात्रना पाणीथी नभी शकता नथी परन्तु अवारनवार बीजा पाणीनी अपेक्षा राखे छे तेम आ क्षुल्लक अने क्षुल्लिका एकवारना आहारथी नभी शकतां नथी एटला माटे बे वारमा तेमनां नामा आप्यां छे, आमां पण कोई विशिष्ट शरीरने अंगे एक वारथी नभावी शके तो एक वारथी पण चलावो ले ।
(अपूर्ण) श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ-स्तोत्रम् कर्ता--मुनिराज श्री वाचस्पतिविजयजी
[पंचचामरवृत्तम् ] सरोजलीननीलिमप्रभाप्रभावुकाम्बुद-च्छटाकटालिवैद्युतप्रकाशनीलकङ्कणम् ।। सुवर्णकर्णिकाम्बुजच्छटाविसारिकधुरं, स्तवीमि पार्श्वनाथमुञ्चमुक्तिसद्मदायकम् ।। १ ।। सहस्रवत्सरायितं व्यशीतिवर्षपूर्वकं, सुनागराजयुग्मकैस्सुरालये च पूजितम् ।। कलङ्कमुक्तचन्द्रवन्मयूखमस्ति निर्मलं, स्तवीमि पार्श्वनाथमुच्चमुक्तिसमदायकम् ।। २॥ अमर्त्यमेघवाहनालिकोत्करेण चुम्बितं, अशेषशेषमस्तकावतसपीठलालितम् ।। सुरासुरेशसेवितं भवच्छिदांघ्रिपङ्कजं, स्तवीमि पार्श्वनाथमुच्चमुक्तिसमदायकम् ॥३॥ स्मृतीन्दुचन्द्रिकायितं क्षणेऽपि सिद्धिदायिनं, भवार्णवे पतत्प्रजासुतारणे हि नौसमम् ।। सदेह यस्य सप्तके भुवां क्रमाम्बुजद्वयं, स्तवीमि पार्श्वनाथमुच्चभुक्तिसमदायकम् ।।४।। पुरा जरां निवारितुं मुरारिराजवन्दितं, यशः शिशुक्षपाकरोव वृद्धिमान्यतां गतम् ।। मुशंखतीर्थपत्तने प्रभावुकेऽधुनोषितं, स्तवीमि पार्श्वनाथमुच्चमुक्तिसद्मदायकम् ।।५।। नृशंससंशयावलीतमोभिदाब्जभास्कर, सुवर्णरत्नकुटिमप्रभोत्करेणभासितम् ।। विसारिसारिपर्षदि प्रकृष्टबोधिरत्नदं, स्तवीमि पार्श्वनाथमुञ्चमुक्तिसद्मदायकम् ॥६॥ पयोऽब्धिवारिनैष्किकपकम्बुकण्ठनिर्गतै-रनेकतीर्थपूतकैर्महाभिषेचनो विधिः ।। सुवर्णशैलशेखरेऽमरेश्वरैर्मुदाकृतः, स्तवीमि पाश्वनाथमुचमुक्तिसद्मदायकम् ॥७॥ जटाकटाब्धिनिर्गता पवित्रिताऽपि जाह्नवी,सदा सुमेखलागता विभाति भाति विस्तृता।। वराणसी तदेशिताश्वसेनराजनन्दनं, स्तवीमि पार्श्वनाथमुच्चमुक्तिसद्मदायकम् ।। ८ ।।
॥ प्रशस्ति ॥ (पृथ्वी छन्दः) सदा सरसि मानसे मुरगणोऽपि यं सेवते, पिबन्ति वचनामृतं सुमतिमाश्रयन्ते परे ।। सलोकसुरसेविते मुनिप्रचारिशंखेश्वरे, व्यरीरचदमुं मुंदा जनहिताय वाचस्पति ॥१॥
॥ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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