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પુરાતન ઇતિહાસ અને સ્થાપત્ય
संग्राहक मांडवगढ संबंधी लेख
श्रीयुत नन्दलालजी लोढा ___ मालव देश में धारानगरी राज्यान्तर्गत मांडवगढ़ नामक जैन तीर्थ है, जो मंडपदुर्ग, मंडमाचल, मंडप, के नाम से प्रचलित था और जहां जैनों की वस्ती बहुत थी व जैन मन्दिर भी ज्यादे थे। आज वहां पर सारा नगर खंडहर सा देख पडता है। बादशाही जमाने की थोडी इमारतें इस वक्त मौजूद हैं। जैन समाज इस वक्त इसको तीर्थ स्वरूप मानता है और यात्रार्थ यात्रियों का आवागमन होता रहता है। इसके प्राचीन जैन इतिहास के संग्रहरूप में कोई पुस्तक छपी हो वैसा देखने में नहीं आया है। विद्वान इतिहासकारों से मेरा अनुरोध है कि इसका जैन इतिहास जितना संगृहीत हो सके एकत्र करके " मांडवगढ का जैन इतिहास" नाम से पुस्तक छपाई जावे तो प्राचीनता के अन्धकार में रहा हुवा इतिहास जरूर प्रकाश में आवेगा । मेरे देशाटन फिरने में मांडवगढ सम्बन्धी मूर्तियों के शिलालेखों व दोवाल वगैरह में लगे हुए पत्थरों वगैरह में खुदे हुए लेख वगैरह प्राप्त हुए हैं और जो होते जावेंगे उसको क्रमशः प्रकाशित करते जाने का विचार किया है। मैं कोई विद्वान नहीं हूं। सेवाभाव से कार्य करता है अतः उसमें त्रुटि रहना संभव है। वाचकगण इसके लिए क्षमा करें और उस ओर मेरा ध्यान आकर्षित करके अनुगृहीत करें ।
(१) सं० १५४१ वर्षे वै० शु० ५. प्रा० सं० जाना भा० राही पुत्र सं० कुरपालेन भा० पुनी पुत्र पदमसी भा० आंबी पुत्री नानो युतेन....मात्र श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंबंका० प्र० तपा श्री सोमसुंदर संताने श्री लक्ष्भीसागरसूरिभिः ॥ श्री मंडपदुर्गे ॥ श्री.
___ यह लेख ग्राम मंडोद, जिला शाजापुर, रियासत ग्वालियर के जैन मन्दिर में पीत्तल धातु की पंचतीर्थी के पीछे है।।
(२) संवत् १५३६ वर्षे मंडपवास्तव्य ओसवाल ज्ञाति सो० आशा भा० बांदूसुतनाथाकेन स्वश्रेयसे श्री मुनिसुव्रतस्वामिबिंब कारितं प्रतिष्टितं श्रीबृहत्तपापक्षे श्री उदयसागरसूरिभिः ।
यह लेख ग्राम केसूर, रियासत धार के, दशा ओशवाल के जैनमन्दिर में श्यामपाषाण की पंचतीर्थी के पीछे है।
(३) मैं श्री रतलाम सम्मेत शिखर स्पेशल ट्रेन में यात्रार्थ गया था उस वक्त ता. १५-११-३३ को श्री भांदक तीर्थ में मन्दिर के अन्दर एक धातु की पंचतीर्थी का लेख देखने में आया, उसमें सं० १५२२ और मंडपदुर्ग लिखा हुवा था, कारण वशात् पूरा लेख नहीं उतार सका ।
(क्रमश:)
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