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श्री आनन्द विमल सूरि निर्मित
साधुमर्यादापट्टक
सम्पादक: — श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा, सिलहट |
तपगच्छ के आचार्यों के निर्मित ४ पटक, जैनधर्म प्रसारक सभा द्वारा ( वर्तमान भाषा में परिवर्तित ) प्रकाशित हुए हैं। उनके अतिरिक्त हमारे बीकानेर के संग्रहालय में प्रस्तुत ५ पट्टक उपलब्ध है, जिसको यहां अक्षरशः प्रकाशित किया जाता है । खरतरगच्छ के भी कई व्यवस्थापत्र उपलब्ध हैं, जिनमें श्री जिनप्रभसूरिजी और श्री युगप्रधान जिनचन्द्रसूरिजी एवं जिनरत्न सूरिपट्टधर जिनचन्द्रसूरि के व्यवस्थापत्र हमारे संग्रह में हैं । इनमें प्रथम द्वय "जिनदत्तसूरिचरित्र" उत्तरार्द्ध और हमारे लिखित " युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि" पुस्तक में प्रकाशित भी हो चुके हैं ।
साधुमर्यादापकों की उपयोगिता आदि के विषय में मुनिराज श्री विद्याविजयजी महाराज का एक महत्त्वपूर्ण लेख 'जैनज्योति' में प्रकाशित हो ही चुका है. तदर्थ यहां पर विशेष नहीं लिखा जाता ।
संवत् १५८३ वर्षे । पत्तननगरे ज्येष्ठमासे श्रीसंघसमुदायमध्ये श्रीआणंद विमलसूरिभिर्लिखितं । सहू ऋषिनइ एटला बोल पाळवा :
१. गुरुनइ आदेश विहार करिव ।
२. वणिगनइ दीक्षा देवी बीजानइ नहि ।
३. गीतार्थनी निश्रायइं मास तीनइ दीक्षा देवी बीजी पर नहीं ।
४. वेगला थका गोतार्थ कन्हइ कोइ एक दीक्षा ल्यइ तेहनी परीक्षा करी वेष पलटाइव पिण विधइ दीक्षा गुरु पासइ दिवराविवी ।
५. पाटण माहे एक गीतार्थना संघाडा चउमासि रहइ ।
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६. क्षेत्रे एक चउमोसि रहइ । आठ मास बीजे क्षेत्रे रहइ ।
७. वेगला एकुं [ वुं ? ] कागल आदेश मगाइवउ ।
८. एकल महात्मई विहार न करितुं । एकलेउ हौंडइ तेहनी मांडलइ किणही न
९. बीज, पांचम, इग्यारिस, अमावस, पूनम एवं मास माहे १२ दिन विगइ
न वहिरवी, उपवास आंबिल निवी वा सकति पचखाण करिवउ ।
१०. तिथि वाघइ तिहां एक दिन विगइ न वहिरवी । ११. पात्रे रोगान न देवउ पात्रा काला काटूआ करवा । १२. योग वह्या पाखई सिद्धांत वाचिव नहीं ।
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