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અનેકાર્થક-શ્રીકેસરિયા તેત્રમ सम्मत्तं भवभेयं-पसमाइनिमित्तजीवपरिणामो ॥ इय सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ ३३ ॥ मोहनिरोहं नाणं-विरइफलं मुत्तिमग्गदीवणिहं । इय सिकवा जस्स मुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ ३४ ॥ संचियकम्मविरेयं-चारित्तं सणावबोहजुयं ।। इथ सिक्खा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ ३५ ॥ सट्टावबोहचरणं-सम्मजुयं मीलियं सिवयमग्गो । इय सिकवा जस्स सुहा-तं केसरियापहुं वंदे ॥ ३६ ॥
॥ उपजातिवृत्तम् ॥ अणंतविण्णाणमयं विमोहं । मोहज्जियाहप्पसरप्पणासं ॥ आसन्नभव्वंगिगणचणिज । सरेमि तं केसरियाजिणेसं ॥ ३७ ।। तव पसाया ण विणाह! मज्झं । कया वि हुज्जा गयविग्धपीडा ।। ण सीहचोरारिपयंडभीई। झाणाऽविलंबा सइमुक्रववुड्डी ॥ ३८ ॥ पूयापरा पुज्जपयं लहंति । भवे भवे तुज्झ समाहिबोहि ॥ जम्मं पह! धम्मियसवंसे। इच्छामि तं तं सययं मुयाऽहं ॥ ३९ ॥
॥ शादूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ एवं केसरियासुतित्थपहुणो भावच्चणा मे कया। सिक्खातत्तसुमेहि रायणयरे जाओ भवो सत्थओ ॥ जुत्ते जुम्मनिहाणणंदससिणा संवच्छरे विक्कमे । वेसाहे सियपकवछट्टदियहे पुण्णा किई पत्थुया ॥ ४० ॥
॥ आर्यावृत्तम् ।। सिरि केसरियाथुत्तं-गुरुवरसिरिणेमिसू रसीसेणं ॥ पउमेणायरिएणं-विहियं पभणंतु भव्वयणा! ॥४१॥ भणणाऽऽयण्णणभावा-गेहे संघस्स संपया वुड्डी ॥ आरुग्गतुहिकित्ती-बुद्धी तह हुन्ज विउलयरा ॥ ४२ ॥
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