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दिगम्बर शास्त्र कैसे बनें? लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी
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(सातवे अंकसे क्रमशः)
प्रकरण ४-श्री भद्रबाहुस्वामी दिगम्बर ग्रन्थोके अनुसार श्रीभद्रबाहु- ख०२, अ.२ के श्लो०१ में लिखा स्वामी दो हुए हैं। (१) पांचवे श्रुतकेवली, है किचतुर्दशपूर्ववित् भद्रबाहुस्वामी, जिनका समय ततः प्रोवाच भगवान् , दिग्वासा श्रमणोत्तमः। वारनिर्वाण संवत्की दुसरी शताब्दिका युग यथावस्थासु विन्यास-द्वादशांगविशारदः॥१॥ है, व (२) अष्टांगनिमित्तवेदी भद्रबाहु- अर्थात्-दिगम्बर पंचमश्रुतकेवली श्री स्वामी, जिनका समय विक्रम संवत्की भद्रबाहुस्वामीने यह कहा है ॥ १ ॥ दुसरी शताब्दिके पूर्वार्धका युग है।
मंगलं-- महायशा, यशोबाहु, जयबाहु ये सब उन्हीके गोवर्धनगुरुं नत्वा, दृष्ट्वा गौतमसंहिताम् । नाम-उपनाम हैं।
वर्णाश्रमस्थितियुता, संहिता वर्ण्यतेऽधुना श्वेतांबर ग्रन्थोंमें एक ही भद्रबाहु
॥११॥३॥ स्वामीका होना माना गया है। और उन्होंने इस श्लोकमें जिस गोवर्धन गुरुके जो ग्रन्थ रचे थे उनमें से आज सिर्फ नमस्कारका निर्देश है उस गोवर्धन गुरुका नियुक्तियां व छेदसूत्र आदि उपलब्ध हैं। नाम दिगम्बर पट्टावलीके अनुसार ही इसके अतिरिक्त उनके कोइ ग्रन्थ नहीं हैं। है। मतलब यह है कि यह भद्रबाहुसंहिता भद्रबाहुसंहिता नामक ग्रन्थ जो आज मुद्रित- किसी और दिगम्बर व्यक्तिकी ही रचना रूपसे उपलब्ध है वो वास्तवमें उनका रचा है। यदि वास्तवमें वह श्रीभद्रबाहस्वामीकी हुआ नहीं है किन्तु उनके नामसे किसी ही कृति होती तो उसमें जिनागमकी औरने बनाया हुआ एक जाली ग्रन्थ है। ही गवाही मिलती, क्योंकि चतुर्दशपूर्वके
दिगम्बर संप्रदायकी मान्यतामें भद्र- ज्ञाताको औरोकी गवाहीकी आवश्यकता बाहुसंहिताकी गवाही है। और इस नहीं पड़ती है। और उपलब्ध भद्रबाहुसमय उपलब्ध भद्रबाहुसंहिताकी रचना संहितामें स्थान स्थान पर दुसरोके ग्रन्थोंकैसे हुइ इसके लिये देखिये :
के उद्धरण, अनुकरण एवं शहादतें मिलते हैं
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