________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
૨૫૦
१. चर्ममां हिंसा थाय छे । २. चर्म अपवित्र छे ।
www.kobatirth.org
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
३. उपर्युक्त बे कारणने लइने गृहस्थ लोको पहेरवामां तथा पाथरवामां चर्मने वापरता नथी ।
४. दशा विशेषमां पय चर्मने बापरखुं ते निन्दनीय अने पापजनक वात छे ।
आ चार बाबतमां प्रथम बाबतने माटे तो प्रथम लखी आव्या छीए के प्रस्तुत चर्ममां हिंसानो लेश पण नथी, माटे अहिंया कांइ लखवानी जरुरत जेवुं रहेतुं नथी ।
बीजी बाबतमां एम जगाववामां आयुं के, चर्म अपवित्र छे । आ बाबतमां अमो तटस्थ भावे रहने लेखकने ज पुछीए छीए के अपवित्रनी व्याख्या शी करो छो? जे वस्तुनां रूप, रस, गंध अने स्पर्श आ चार गुणो खराब होय तेने अपवित्र कहीए छीए एम जो कहेता हो तो प्रस्तुत चर्ममां आ चारे वानां खराब नथी माटे अपवित्र थइ शकशे नहि ।
4
कदाच एम कहेवामां आवे के जेनो वर्ण खराब होय ते अपवित्र छे तो ते पग युक्त नथी, कारण के वर्ण पांच प्रकारनो छे, अने पांचे प्रकारना वर्णवाली वस्तु पवित्र वस्तु तरीके गयी शकाय छे जेम पांचे वर्णनां मणि रत्ना, तथा पांच वर्णना देहधारी तीर्थंकर देवो विगेर ।
1
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ફાગણ
कदाच एम कहो के जेनो रस खराब हाय ते अपवित्र कहेवाय लें तो ते पग युक्त नथी, कारण के दरेक रसवाळा गोचरी मुनिना वापरवामां आवे छे, अने ते पण अपवित्र थइ जरो, अथवा दरेक रसवाळा औषधि होय छे अने ते अपवित्र गगाती नथी ।
कदाच एम कहो के जेनो गन्ध खराब होय ते अपवित्र । तेना जबाबमां जगाववानुं जे, गन्ध बे जातना छे :- सुरभि अने दुरभि, आमां सुरभि गन्धवाली वस्तु अपवित्र छे एम तो तमे पण कही शकशो नहि । दुरभि गन्धवाली वस्तु अपवित्र छे एम जो कहता हो तो दुरभि गन्धनी व्याख्या शी करो छो? जे सुंधवाथी आनन्द न थाय अने कंटाळो उपजे ते दुरभि गन्ध कहेवाय छे एम जो कहेता हो तो आवा प्रकारना मर्दननां तेल विगेरे पण आवे छे अने ते अपवित्र तरीके गण शकातां नथी ।
स्पर्श खराब छे माटे अपवित्र छे एम जो कहता हा तो ते पण व्याजवा नथी, कारण के दरेक स्पर्शवाळी वस्तुओ मुनिओ उपयोगमा ले छे । तथा सारा अने नरसा
रूप, रस, गन्ध अने स्पर्शमां मुनिए समभावे रहे जोइए ए हिसाबे पण तेनुं वर्जन करी शको तेम नथी ।
(अपूर्ण)
For Private And Personal Use Only