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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ફાગણ कदाच एम कहेबामां आवे के, तलियां उन संमूर्छन जीवोंकी हिंसा मुनिको लगेगी। बाधल हावाथी रात्र अथवा दिबसे उज्जड मागं आना जबाबमा जणादवानुं जे, तज्जीनमुनिओ विहार करवा लागशे, अने खुल्ला प्रयुक्त तारहित शुष्क चर्ममां संभूर्छन पग हशे तो, कांटा रिश्री बचवानी खातर जीवोनी उत्पत्ति ज छे नहि तो पछी “नास्ति रात्रे अथवा दिबसे उजड मार्गे विहार करशे । मूलं कुतः शाखा" आ न्यायने अनुसारे हिंसा नहि । आना जबाबमा जणाबवानुं जे मुनि । ज कइ रीते होइ शके ? तज्जीवप्रयुक्तार्द्रताकांटा विंगरथी बचवानी खातर ज रात्रे रहित एटले जे जीवला कलेवरनुं ते धर्म छे अथवा दिवसे उज्जड मार्गे विहार नथी करता ते जीवे ते शरीर बांधवामां अने पोषवाना एम नहि, परंतु जीबोना संरक्षणने माटे पण । समयमा जे जे भिनाश मूकी हती ते चाली भले कदाच प्रबल कारणे तलियां बांध्यां। गया बाद सुका थइ गयेल अने साफ करेला होय तो पण जीवरक्षण तो तेना म्यामां होएं चर्ममा त्रस जीवनी उत्पत्ति जनश्री, आ ज जोइए । तथा चर्मनां तलियां विगेरे वात अमो प्रथम विस्तारपूर्वक चर्ची आया रात्रीगमनना प्रयोजक नथी, कारण के ते छीए माटे वधारे वर्चता नथी । सिवाय पण केइ लोको रात्रिगमन करता नथी। कारणता अन्वय-व्यतिरेकगग्य छे, सारांश-५, चमडेके उठाने, रखने, ते अहिं नथी। सुखाने, मरोडने, तहकरने, फाडने, आदिमें कदाच एम कहेवामां आवे के चर्मना असंयम होता है । प्रयोजनमा गत्रिगमन तथा उज्जड मार्गमा आना जव बर्मा जावयानुं जे, वस्तुने गमन बताववामां आयां छे तेनुं शुं करशो? उपाडवामा जो असंगम गावामा आवतो आना जवाबमां जगाववानुं जे, रात्रिगमन होय तो मोरपिच्छी कमण्डलु विगेरने उठावनार अने उजड मार्गमा गभन जे बतारवायां तमारा दिगम्बर मुनिआने ५। असंयम आव्यां छे, तेनुं प्रयोजक चर्म नथी परंतु थइ जशे । चमने सुकाववामा असंयम कह्यो शासनना जे कार्य विगेरे तेना साधक तीन तेना जवाबमां जमाबवान जे, शुष्क साफ गमनादिक छे । चर्म तो तेवा पुष्टालम्बनमां कोल चर्म होय तेने मुकाववानी जरुरत ज पादस्खलनादिकने बचावनार छे। एम शी छे ? तथा सुकाववामां जो असंयम थतो समजाने त्या प्रयोजन तरीके जमावेल छे, होय तो पानु कमंडलु सुकवनार तमारा वास्तविक कारण नथी, परन्तु कारण ना दिगम्बर मुनिने पण असंयम थइ जशे । अंगनुं पोषक छे । तथा मरडलामा असंयम बतान्यो तेना ____ सारांश-४, चमडा जीव उत्पन्न होने- जवाबगां जाववानुं जे, शुष्क-साफ चर्मने का स्थान है, उसपर बैठने सोने आदि से मरख्वानी शी जरुरत छे ! कदाच एम For Private And Personal Use Only
SR No.521508
Book TitleJain Satyaprakash 1936 02 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1936
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size20 MB
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