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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
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नंदिमित्र, ५ अपराजित, ६ गोवर्धन, ७ प्रथम ११ आधारी..... १९ नक्षत्र, २० भद्रबाहुस्वामी । सं० १६२ पर्यत। जयपाल, २१ पांड, २२ ध्रुवसेन, २३
१० पूर्वी-८ विशाख, ९ पोष्ट्रिय कंस । सं० ५६५ पर्यल। १० क्षत्रिय, ११ जय, १२ नागसेन, १३ सिद्धार्थ, १४ धृतिसेन, १५ विजा. १६
आजासंगत्.ि -.-२४ सुभद्र, २५ बुद्धिल्ल (बुद्धिमान), १७ देव (गंगदे) १८ यशोभन, २६ द्वितीय भद्रबाह, २७ लोहार्य धर्मसेन । सं० ३४५ पर्यन्त ।
सं० ६८३ पर्यन्त३७ । ३५. सामान्यतया जैन आगमे में अंतिम पूर्वदित् के लिए “भद्रबाहु" नाम रक्खा गया हो, ऐसा नन्दीसूत्रसे सिद्ध होता है । मगर अंतिम दशपूर्वदित्को भी "लघुभद्रबाहु" कहने की प्रथा, दिगम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित होगी, इसी कारण उस सम्प्रदायमें श्री वज्रस्वामीको (जिनका चरित्र गत प्रकर' में बताया है) द्वितीय भद्रबाहु मान लिया है।
३६. यहां बताया है कि-शर्वक वेदी तेरह आचार्यों का समयकाल १८३ वर्ष है ओर अंगात् पांच आचार्यों का शासकल २२० वर्ष है। इन दोनों समयक.में बडा फर्क है, इसीसे पूरातत्ववित् द्विान् भान सकते हैं कि--- आचार्य एरम्परा बिलकुल कल्पित है, अथवा बिलकुल संदिग्ध है।
३७. दि० पट्टावली, सूअखं पो, श्रुतावतार, नीतिसार, अंगपन्नति, द्वि० श्रुतावतार. आदिपुराण, उत्तरसुराग, हरिवंशपुराण और स्वामी समन्तभद्रके ग्रन्थों के अनुसार यह यादी दी है। मगर उन ग्रन्थों में एक दुसरेसे बड़ा पाठ भेद है । जैसा कि ... पट्टालीमें नागसेन के स्थानमें सागरसेन नाम है। आपनात नागसेन, सिद्धार्थ व निरोनके नाम नहीं है। सेनसंघकी पट्टावलीमें जयपाठके बाद मुनीन्द्र नाम आंधक है। रामनाथ दीनानाथ संपादित दिगम्बर पट्टावलीमें नक्षत्रसे लोहाचार्य तकके ५ आचार्यों को “एकादशांगवित् वर्ष २२०" लीखे हैं। नन्दीसंघकी (प्राकृत) पट्टावलीमें भी ९. आचार्योंको अधिक अंगवित् लीस्कर
और ४ आचार्योंको आचारांगचित् वताया है। नन्दिसंघ गुगविलीमें मानन्दीको पूर्वपदांशवेदी माना है। श्रुतावतार श्लोक-८५, १०२,१०४,१०५, १५०में अर्हदबली, माधनन्दी. धरसेन व गुणधरको अंगर्वदेशैकदेशवेदी माना है। हरिवंशः ग में लोहाचार्य के पीछे विनयंघर, गुप्तगुप्ति. शिवगुप्त व उर्हद बलीको; सूउ खंव में बिनयज्ञ, श्रीदत्त. शिवदत्त ब अबुहदत्तको; तथा श्रुतावतारमें विनयधर, श्रीदत्त, शिवदत्त ब अहदतत्तको आपूर्वज्ञानके देशज्ञानी माने हैं।
महत्वकी बातमें सभी ग्रन्थकार एकमत नहीं हैं । जितने ग्रन्थ है इतनी ही कपनायें हैं। इतने मतभेद, जैसे कैसे भी “आगमप्रवाहकी कल्पना" खड़ा करनेकी धूनका परिणाम
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