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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org દિગમ્બર શાસ્ત્ર ઍસે મને ? ( रचना सन् ९५० इस्वी ), विरंचि - पुरमें उत्कीर्ण १३वो शताब्दी का शिलालेख, तामिल साहित्य, तामिल शब्दकोषो, सूत्रकृतांग टीका, दृष्टिवाद अंगका दूसरा सुत्त विभाग के २२ सूत्रों का वर्णन, और दिगम्बर ग्रन्थ प्रशस्त अपने को हठात् मनाते हैं कि- आजीवक त्रिराशिक और दिगम्बर .२८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૯ ये सभी एक अर्थके सूचक हैं |२ (जैन साहित्य संशोधक वर्ष ३, पुण्याश्रव कथाकोष, नन्दीसूत्र समवायांग सूत्र ) उन्होंने एक हो कर " मूलसंघ " की वृद्धिमें जोशिले प्रयत्न किये थें । शिवभूतिको दो शिष्य थे, १कुंदकुंद, २ कोट्टवीर । उन दोनोंसे १ मूल चार परि० १० गाथा १८ में अचेल - कल्पका स्वतंत्र विधान है ? यदि साधुके पांचवे महाव्रतमें वस्त्रोंका निषेध होता तो अचेलकता को भिन्नभाचार में क्यों बताना पड़ा ? । यह विधान पाठ आवश्यकनियुक्ति गा० १२४६ का अनुकरण मात्र है || २ मूलाचार परिच्छेद १ गाथा १४ में ज्ञानोपधि संयमोपधि और तपउपधि रखने का फरमान हैं ॥ परिच्छेद २, गा० ७-११४, प०गा० १३८, ५० १०, गा० २५--४५ में भी साधुओं की उपधिका जिक्र पाया जाता है | ३ राजवार्तिक (तत्वार्थ टीका) में " विशेष युक्तोपकरणकांक्षी भिक्षु रूपकरण " पाठसे साधुके उपकरण होना बताया है ॥ - बकुशः ४ ज्ञानार्णवमें शय्या-आसन वगेरह मुनियों के उपकरण की प्रतिलेखना फरमाई है। ५ तत्वार्थ सूत्र की श्रुतसागरी - टीका में “ कम्बलादिकं गृहित्वा न प्रक्षालंते " इत्यादि वस्त्रों के पाठ हैं । इसके अलावा भगवती आराधना में भी वो ही कथन है । ६ परमात्मप्रकाश टीका में लिखा है कि - " अन्न-पान - संयम शौचज्ञानोपकरण - तृणमय प्रावरणादिकं किमपि गृहणंति, तथापि ममत्वं न करोति ॥ 1 ७ दि० आचार्य अमितगति फरमाते हैं || वस्त्र पात्राश्रयादिन्य- पराण्यपि यथोचितं । दातव्यानि विधानेन, रत्नत्रितयवृद्धये ॥ २८ कुन्दकुन्दान्वये ख्याते ख्यातो देशिगणः ग्रणीः | बभूव संघाधिपः श्रीमान् पद्मनन्दी त्रि - राशिकः ॥ ४ ॥ २९ प्रोफेसर हीरालालजी दिगम्बर जैन का मत है कि - दिगम्बर और श्वेता For Private And Personal Use Only
SR No.521504
Book TitleJain Satyaprakash 1935 10 SrNo 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
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