SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ मुनिओने स्वार्थ के सत्ता अभाववान वा- राखीने यमगुणनो वृद्धिने माटे छत्रक की लेशमात पण कामा न आने तोहण बतायेल छे. अर्थात कोईपण रोते उलटुं अनेक शारनंकन करा सुनिओनो संगमगुण अबाधित रहे ते स्त्रना रहना या पडछ बात लक्षमा राखोने टीकाकार भगवन्ते अने तेना न्यायाले कांदणलवान वीडं व्याख्यान्न करेल छ। होतुं नथी. अधिकारी जयाज नहा आलेखके आगल पण आपवान्तना ज्ञानथों चित राखभानुं पक्ष दिक वस्तुने पकडीने तना पर मन कांइ कारण लयकारक व्याख्याना ममता लखाणा लख्यां के तेनो पण दिकमां अधिक भावो सिद्धान्तमा जबाव अमुक अंशे आमां आवी जाय छे. रहस्यो समजावीन सिद्धान्तना ज्ञानी लेखके पोतानाज दिगम्बर शास्त्रोनुं जो बनाववामा आ जबारात तत्त्व तथा प्रकारे अवलोकन कयु होत तो पण पिपासु आत्मायाने माटे उपरने या लम्न आ लख लखवानी जरुरत पडत छ तेवी राते प्रवचन शतकान नहीं दिगम्बरोने पण मानतुं पडयं छे के पण शास्त्रकाराम मयान अजयभार अपवाद सिवायनो उत्सर्ग कल्याणरहेवाने माटे अनक सुभाषिता समस्या कारा हाइ शकतो नथा. जुओ दिगम्बर छे, अने तेमनार सननी महान मननाचनलार ग्रन्थनो वृत्ति 'तन्न बोजो मुकेल छे. आवावर नुसक्ष्मः श्रेयानपवानिरपेक्ष उत्सर्ग इति परस्परं ष्टिथी निरीक्षण करता कोई पडशे के सापेक्षोत्तापवादरूपयात् स्याद्वादस्ये. इपरोक्त वाक्क व्याजयो अने ति अर्थात् परस्पर अपेक्षा राखता एवा आवश्यकताबाळ छ. हुं निर्भयरात उत्सर्ग अने अपवादरुप स्याद्वाद हेोवाथी कही शकुछ के योतराग सिद्धान्त अरवारसहित उत्सर्ग कल्याणकारी नथी. अबाध्य अन अविचल छ जेने आ प्रमाण दिगम्बरदर्शनमा पण उत्सर्ग माटे कालिकालसर्व भगवान हेमचन्द्र- शगेना जेम अपवादमागेने पण स्थान सूरि महारज जेवाओ पण महावारदेवनी आपदुं पर्यु छ, स्थान आप पडयुं छे. स्तुति करतां नाचे प्रमाण दोषण मुके पलुज नाहे परंतु तेना विधाना छ. 'अबाध्यसिद्धान्तमान सेवनाना दृष्टान्तो पण सारांश ए के नश्वेताम्बर मोजुद छ जुओ श्री गुरुदास मुनिओ छत्र धारण करता नथी. विरचित प्रायश्चित चुलिका लोक भने तमना शारूकारा पण छन अक्षरमा तथा तेना पर नन्दिगुरुकृत राखयानो ठेका ठेकाणे नकटी वैयावृत्यानुमोदेऽपि तद्रव्य आ श्वेताम्बर जैन दर्शनको राजमार्ग स्थापनादिक। पथ्यस्यानयने सम्यक् रंतु नाना जनपद बिहारी सुनिजना सप्ताहादुपसंस्थितिः ॥ ८८ ॥ कोई वखत कुंकणविगेरे देशमा वाया टीका वैयावृत्यांनुमोदेऽपि । होय अने त्या निरन्तर अनर्गल वाद वयावत्वं शशेराहारोषधादिभिरुपकारकपडतो हाथ जाया अवसरमा भन्दगानामा सक्ष्यानुमोदे मन्ग्लानादिकारण दिकना आनवार्थ कार उपस्थित समाश्रयणादनुमतो च सत्याम् ।' थया होय, में जा बाजाइपद तद्रव्य स्थापनादिक' तस्य वैयावृ. रोते निर्वाह था शती स्वस्य द्रव्याणां भाजनप्रभृतोनां स्थाहोय त्यारे संयमगुणने लक्ष्यमा पनादिक निधानधावनबन्धनादिक्रिया For Private And Personal Use Only
SR No.521503
Book TitleJain Satyaprakash 1935 09 SrNo 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages37
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy