SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ २१ वर्षोंतक अकाल होनेका जान कर उ- का पहाड देखा । अब आचार्यने अपना ज्जैनमें सबको कह सुनाया। अतः सारा अल्प आयु जान कर आनंद से तपसंघ उत्तरसे प्रयाण कर के दक्षिणकी समाधि की आराधनाके लिये समस्त ओर चला । अल्प दिनोमें मुभिक्ष देश संघको पुछ कर, संघको एक शिष्यकी में जा पहुंचा। जहां आचार्य प्रभाचंद्रने साथ विदा करके, यहां बडी चौडी एवं उस भूमितलके ललामके सामान, विविध ठंडी शिलाओं के उपर अपने शरीरका दरखत एवं कृष्ण-हरि शिलाओं से स्थापित करके समाधि मरण प्राप्त सुशोभित, सूअर सिंह विगेरहसे व्याप्त, किया । बादमें साथके ७०० मुनिओने व छोटी-बडो गुफावाला"कटवप्र'नाम भी समाधिमरण पाया ॥ चन्द्रगिरि पर्वतकी चन्द्रगुप्त वस्तीका शिलालेख जितं भगवता श्रीमद्धर्मतीर्थविधायिना । __वर्द्धमानेन सम्प्राप्त-सिद्धिसौख्यामृतात्मना ॥१॥ लोकालोकद्वयाधारवस्तु स्थाणु चरिष्णु च । सच्चिदालोकशक्तिः स्वा व्यप्णुते यस्य केवला ॥२॥ जगत्यचिन्त्य-माहात्म्य-पूजातिशयमीयुषः । तीर्थकृन्नामपुण्यौघमहार्हन्त्यमुपेयुषः ॥ ३ ॥ तदनु श्रीविशालेयञ्जयत्यद्य जगद्वितम् । तस्य शासनमब्याजं प्रवादिमतशासनम् ॥ ८॥ अथ खलु सकलजगदुदयकरणोदितातिशयगुणास्पदीभूतपरमजिनशासनसरस्समभिवर्धितभव्यजनकमलविकशनवितिमिरगुणकिरणसहस्रमहोतिमहावीरसवितरि परि निवृत्ते भगवत्परमर्षि-गौतम गणधर-साक्षाच्छिष्य लोहार्य-जम्बु-विष्णुदेव-अपराजित-गोवर्धन-भद्रबाहु-विशाख-प्रोष्ठिल - क्षत्रिकार्य-जयनाम -सिद्धार्थ-धृतषेण--बुद्धिलादि गुरु-परमपरीण क्रमाभ्यागतमहापुरुषसन्तति समवद्योतितान्वय भद्रबाहुस्वामिना उज्जयिन्याम् अष्टाङ्गमहानिमित्त-तत्त्वज्ञेन त्रैकाल्यदर्शिना निमित्तेन द्वादशसंवत्सरकालवैषम्यमुपलभ्य कथिते सर्वसंध उत्तरापथात् दक्षिणपथं प्रस्थितः आर्षेणैव जनपदं अनेकग्रामशतसंख्यमुदितजनधनकनकशस्यगोमहिषाजाविकलसमाकीर्णम् प्राप्तवान् अतः आचार्यप्रभाचन्द्रेणामावनितलललामभूतेऽथास्मिन् कटवप्रनामकोपलक्षिते विविधतरुवरकुसुमदलावलिविकचनशवलविपुलसजलजलदनिवहनीलोपलतले वराहद्वीपिब्याचक्षतरक्षुयालमृगकुलोपचितोपत्यका-कन्दर-दरी-महा-गुहा-गहनभोगवति समुत्तुङ्गशृङ्गे शिखरिणि For Private And Personal Use Only
SR No.521503
Book TitleJain Satyaprakash 1935 09 SrNo 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages37
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy