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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७ डो० ल्युमन कहते है कि- स्वर्गगमन हुआ। बाद में विशाखाचाप्रथम भद्रबाहुस्वामी सं० १६२-१७० यने दक्षिणसे लोटकर उत्तरमें विहार वीर निर्वाणमें हुए । द्वितीय भद्रबाहु किया। (पं० नाथुराम प्रेमीसे अनुस्वामी, जिसका दक्षिणमें जानेका - वादित दुसरा-संस्करण) त्तांत दिगम्बर कथाग्रन्थोमें मिलता है ९ किंग एडबर्ड कोलेज-अमरावसं.२३० विक्रममें हुये । ये दोनों आ तीके प्रोफेसर हीरालालजी (दिगम्बर चार्यों के समय के बाद श्वेताम्बर जैन ) लिखते हैं कि-श्रवण बेल्गुल दिगम्बर के संघभेद हुए है। के शिलालेख नं० १की वार्ता इन सब ( ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया से विलक्षण है उसके अनुसार त्रिका७५-७६ । वीर वर्षे. ४, अंक १) लदर्शी भद्रबाहने दुर्भिक्षकी भविष्यवाणी ८ पुण्याश्रव कथाकोश (हिन्दी) की । जैन संघ दक्षिण पथको गया, वउपवास फलाष्टक की पांचवी नंदिमित्र प्रकट पर प्रभाचंद्रने जैन संघको आगे कथा में उल्लेख है कि-मौर्य चन्द्रगुप्त भेजकर एक शिष्यसहित समाधि आएवं चाणाक्यने जिनदीक्षा ली थी। राधना की । यह वार्ता स्वयं लेखकके बाद में बिन्दुसार अशोक कुणाल और पूर्व ओर परभागोंमें वैषम्य उपस्थित " द्वितीय चंद्रगुप्त " (संपति) भारत करने लिये अतिरिक्त ऊपर लिखित वर्षमें राजा हुए। द्वितीय चंद्रगुप्तने प्रमाणेांके विरुद्ध पडती है। भद्रबाहु नंदिमित्रके भवमें कापोती वृत्ति धारकर भविष्यवाणी करके कहां चले गये ? देवलोकमें देव होकर यहां जन्म लिया प्रभाचन्द्र आचार्य कोन थे ? उन्हे जैन था। द्वितीय चन्द्रगुप्तको सोलह स्वप्न संघका नायकत्व कब और कहांसे प्राप्त आये थे, राजाने उनके फल सुनते ही हो गया ? इत्यादि प्रश्नों का लेखमें कोई राजकुमार सिंहसेनको राजगद्दी पर उत्तर नहीं मिलता ॥ शिलालेख नं०१ अभिषेक किया और भद्रबाहुम्वामीके जिसकी वार्ता पर हम ऊपर विचार कर पास जिनदीक्षाका स्विकार किया। चुके है अपनी लिखावट (कनडी लिपी भद्रवाहस्वामी बारह वर्षोंके अकालमें में वह लेख है, कनडी लिपीके उत्प१२००० मुनिओंको साथमें ले कर त्तिका समय ही लिपीविशारदोंने विक्रदक्षिणमें चले गए, और वहां ही उनका मकी ६ठी ७वी शताब्दीका निश्चितकर इसके उपरांत श्रवण बेलगोलके शिलालेख करीब करीब संवत् १००० से प्राचिन नहीं हैं, उनको विक्रम से प्राचिन होना लिख देते है। For Private And Personal Use Only
SR No.521502
Book TitleJain Satyaprakash 1935 08 SrNo 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
PublisherJaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
Publication Year1935
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Satyaprakash, & India
File Size15 MB
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