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________________ इसप्रकार एक समय में जैनधर्म का पुण्यक्षेत्र होकर, जैनाचार्यों की तपोभूमि होकर प्रसिद्ध राजपरिवारों के समय में निर्मित जिनालयों का खजाना माने जानेवाला यह बंकापुर अनेक आक्रमणों से जर्जरित होकर अपने यहाँ के जिनालयों को खोकर, सिर्फ उनके नामों से परिचित होकर बना रहा है। देवालयों के विध्वंसनकार्य रूपांतरक्रिया, समूलनाशक्रिया और नाश की कोशिश - इन तीन क्रियाओं द्वारा घटे होंगे। अथवा किसी कारणवश सामूहिक मतांतरित इस ग्राम के लोक अपने देवालय निष्प्रयोजक न रहें - इस विचार से अपने आप ही इन देवालयों में परिवर्तन किए होंगे। देवालयों की समूलनाश-क्रिया और नाश करने की कोशिशों के लिए मतद्वेष के कारण होने पर भी कभी-कभी वाद-स्पर्धाओं में हार भी कारण बन जाता है।" जैनधर्म को अधिक महत्त्व देकर, आश्रय देकर अपना राजधर्म बना लिये गंग, राष्ट्रकूट, चल्लकेतन और रट्ट आदि राजपरिवार नष्ट होने के बाद जैनधर्म को राजाश्रय नहीं मिला। इससमय में शैव, वैष्णव, भक्ति आंदोलन और मुसलमानों का आक्रमण हजारों जिनालयों के नष्ट होने के कारण बन गए। यहाँ के शिलालेख इसके साक्ष्य हैं। अहिंसा के आराधक अल्पसंख्यक जैनसमाज ने ऐसे अतिक्रमणों के प्रति प्रतिकार या अन्यदेवालयों को नाश करना आदि विनाश के कार्य नहीं किए हैं। उसने दूसरों के द्वारा विनष्ट जिनालयों का जीर्णोद्धार किया है। इसका साक्ष्य है यह कन्नड़ शिलालेख स्थिरजिनशासनोद्धरणरादियोळारेने राचमल्ल भूवर, वरमंत्रिरायने बळिक्के बुधस्तुतनप्प विष्णुभूवर । वरमंत्रि गंगणने मत्ते वळिक्के नृसिंहदेव भूवर, वरमंत्रि हुळळने पेरंगिनितुळळड पेऽळलागदेऽ।। चावंडराय (तलकाडु गंगराज इम्मडि मारसिंह और नाल्मडि रेचमल्ल के मंत्री) गंगराजा (होयसळ विष्णुवर्धन के दण्डनायक) और हुळळराजा (होयसळराजा विष्णुवर्धन, नारसिंह, इम्मडि बल्लाळ के भंडारि और महाप्रधानी) ऐसे कार्य करने में प्रसिद्ध हो गए हैं। इतना ही नहीं और भी अनेक दानशूर, समाजसेवकों ने जीर्णोद्धार के कार्य किये हैं, ऐसे कार्यों का विवरण देनेवाले अनेक शिलालेख मिलते हैं। ऐसे निरंतर आक्रमणों से भयभीत लोग अपनी भौतिक-संपदा लेकर गाँव छोड़ते समय अपने देवी-देवताओं की मूर्तियों को जमीन में छिपाकर जाते थे। ऐसी घटनाओं को देखकर ही महान् दार्शनिक श्री बसवेश्वर जी ने 'अंजिके बंदरे हळुव दैव' कहा है। इसीतरह बंकापुर के कोट्टिगेरि प्रदेश में भूम्यंतर्गत पार्श्वनाथ और चौबीस तीर्थंकरादि मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। ___ इसप्रकार विनाशित बंकापुर के जिनालयों के भग्नावशेषों का उपयोग अन्य देवालयों के निर्माण में किया गया है। इसके कई निदर्शन मिलते हैं। आज कल का 'मागीकेरि' प्रदेश उस प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक) 00 75
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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