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________________ विद्यमान हैं। बादामी के चालुक्य-राजवंश तथा मान्यखेट के राष्ट्रकूट-राजवंश के शासनकाल में शिलालेखों को काटकर मन्दिर-स्थापत्य बनाने की परम्परा बहुत विकसित हुई। ईसवी 550 और 880 के मध्य में कर्नाटक में बादामी, पट्टदकल तथा ऐहोले में अनेक जैन-मन्दिरों का निर्माण हुआ। इनमें से कई मन्दिर शिलाओं को काटकर बनाये गये। शेष समतल-भूमि पर पत्थरों द्वारा बनाये गये। भारतीय स्थापत्यकला के विकास के अध्ययन-हेतु कर्नाटक के इन मन्दिरों का विशेष महत्त्व है। उत्तर भारत में 'नागर शैली' के मन्दिर बनाये जाते थे, जिनका मुख्य लक्षण ऊँचा शिखर था। चालुक्यों के समय में कर्नाटक के अनेक मन्दिर बेसर शैली' के बनाये गये। इस शैली की विशेषता यह है कि उसमें उत्तर-भारत की शिखर-प्रणाली तथा दक्षिण की विमान-शैली का सम्मिश्रण है। दक्षिण-भारत के मन्दिर-वास्तु 'द्रविड़-शैली' के नाम से प्रसिद्ध हैं। चालुक्यों के समय में कर्नाटक में निर्मित अनेक मन्दिरों में द्रविड़-स्थापत्य का रूप मिलता है। 'बादामी पर्वत' को काटकर बनाया गया एक बिशाल जैन-मन्दिर उल्लेखनीय है। इस मन्दिर में विभिन्न-अलंकरणों को तथा जैन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को प्रभावपूर्ण ढंग से प्रदर्शित किया गया है। बादामी तथा पट्टदकल के अनेक जैन-मन्दिर अठपहल-शीर्षवाले हैं। द्रविड़-स्थापत्य की यह एक विशेषता है। कर्णाटक के कुछ मन्दिरों में नागर-शैली वाले उच्च-शिखर हैं। ऐहोले में एक मन्दिर में भारत की तीनों मन्दिर- शैलियों का समन्वय दृष्टिगोचर है। ___ राष्ट्रकूटों के शासनकाल में ऐलोरा' का प्रख्यात शिवमन्दिर एक विशाल-पर्वत को काटकर बनाया गया है। इस मन्दिर का अलंकरण तथा मूर्तिविधान अत्यन्त-कलापूर्ण है। इस मन्दिर के अनुकरण पर ऐलोरा में कई जैन-मन्दिरों का निर्माण किया गया। वहाँ 'इंद्रसभा' नामक जैन-प्रासाद विशेषरूप से उल्लेखनीय है। इसका निर्माण लगभग 800 ईसवी में हुआ। चट्टान को काटकर बनाए गए दरवाजे से इस प्रासादं में प्रवेश करते हैं। प्रासाद का प्रांगण 50 फुट वर्गाकार है। प्रांगण के मध्य में एकाश्म या इकहरे पत्थर का बना हुआ द्रविड़-शैली का मन्दिर है। पास में ऊँचा 'ध्वज-स्तम्भ' है। जैन-मन्दिर में ध्वज-स्तम्भ बनाने की परम्परा दीर्घकाल तक मिलती है। उत्तर तथा दक्षिण-भारत के मन्दिरों में इसप्रकार के ध्वज-स्तम्भ दर्शनीय हैं। कतिपय ध्वज-स्तम्भों को चाँदी या सोने से मढ़ दिया जाता था। जैन-मन्दिर-स्थापत्य का दूसरा रूप 'भूमिज-मन्दिरों' में मिलता है। इन मन्दिरों का निर्माण प्राय: समतल-भूमि पर पत्थर और ईंटों द्वारा किया जाता था। उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बंगाल और मध्यप्रदेश में समतल भूमि पर बनाये गये जैन-मन्दिरों की संख्या बहुत बड़ी है। कभी-कभी ये मन्दिर जैन-स्तूपों के साथ बनाये जाते थे। 1018 प्राकृतविद्या- जनवरी-जून '2003 (संयुक्तांक)
SR No.521370
Book TitlePrakrit Vidya 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size12 MB
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