________________
गए पाठों का प्रामाणिकरूप से तुलनात्मक सम्पादन कर उसे मूलरूप में ब्राह्मी लिपि, देवनागरी लिपि, उड़िया लिपि एवं अंग्रेजी में शिलापटों पर लिखाया जाए; साथ ही इसका हिन्दी, अंग्रेजी एवं उड़िया भाषाओं में अनुवाद करवाकर भी साथ-साथ प्रस्तुत किया जाए। ये शिलापट हाथीगुम्फा के बाहर ही पुरातत्त्व विभाग की देखरेख में गरिमापूर्वक लगाए जाए, ताकि आनेजाने वाले पर्यटक एवं तीर्थयात्री इसके संदेशों से परिचित होकर यहाँ की गरिमा को जान सकें। उन्होंने सम्राट् खारवेल के अभिलेख में निहित जनदृष्टि के तथ्यों एवं अन्य समस्त बिन्दुओं पर एक प्रामाणिक पुस्तक के निर्माण और प्रकाशन की आवश्यकता पर भी बल दिया। उनके अनुरोध पर डॉ. सुदीप जैन ने यह गुरुतर कार्य प्रारम्भ करने का वचन दिया। समारोह का संचालन उत्कल संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति श्री नरेन्द्र कुमार जी मिश्रा ने किया । - अरुण कुमार जैन, भुवनेश्वर (उड़ीसा) *** खण्डगिरि-उदयगिरि सिद्धक्षेत्र में तीर्थंकर वृषभदेव (कलिंग जिन) की प्रतिमा का नवीन वेदी पर पुर्नस्थापना का ऐतिहासिक कार्यक्रम सम्पन्न
श्री 1008 दिगम्बर जैन 'खण्डगिरि - उदयगिरि' सिद्धक्षेत्र में खण्डगिरि पर्वत पर दिनांक 6 से 8 फरवरी पर 3 दिन के भव्य आयोजन के साथ नवीन वेदिका पर कलिंग जिन 'तीर्थंकर वृषभदेव' की प्राचीन प्रतिमा की पुर्नस्थापना की गई।
भारत के पूर्व में स्थित यह सिद्धक्षेत्र सम्पूर्ण भारत में कुछ अनचीन्हा सा हो गया है, इसलिए अधिकांश जैन - यात्री श्री सम्मेद शिखर जी से ही अपनी यात्रा समाप्त कर वापिस चले जाते हैं। पर यह आयोजन इस स्थिति को बदलकर सम्पूर्ण राष्ट्र को इस क्षेत्र की पहचान दिलाएगा। —यह विश्वास परमपूज्य ऐलक 105 श्री गोसल सागर जी ने व्यक्त किया ।
कटक में वर्षायोग के समापन के पश्चात् परमपूज्य 105 गोसल सागर जी महाराज का यहाँ पदार्पण हुआ। उनके आते ही यहाँ दैनिक पूजन व तीन बार नित्य प्रवचन के कार्यक्रम प्रारम्भ हो गए। अपनी नियमित पर्वत वंदना से पूज्य श्री ने तीर्थंकर वृषभदेव की प्राचीन प्रतिमा के स्थापना की विसंगतियों की ओर ध्यान दिलाया, जिसे समाज ने पूरा करने का संकल्प लिया व एक नवीन वेदी की स्थापना कर कलिंग जिन तीर्थंकर वृषभदेव की प्राची प्रतिमा की पुर्नस्थापना कर संकल्प लिया। कार्यक्रम की शुभ तिथियाँ 6 से 8 फरवरी तय की गई। भुवनेश्वर स्थित छोटी सी समाज के लिए पर्वत पर विशाल आयोजन का संकल्प एक विराट दुष्कार्य जैसा ही था पर गुरु- आशीर्वाद व दृढ़ संकल्प से यह महान् कार्य सानंद
सम्पन्न हुआ ।
दिनांक 6 फरवरी को घट यात्रा ध्वजारोहण वेदी व भूमि - मंडप - शुद्धि तथा दिनांक 7 फरवरी को पंचपरमेष्ठी-विधान का कार्यक्रम पर्वत पर सम्पन्न हुआ। इसके पूर्व दिनांक 31/1/02 से 5/2/02 तक जाप्य - कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। दिनांक 8 फरवरी को उषाकाल से दैनिक पूजा के कार्यक्रम पर्वत पर प्रारंभ हुए तत्पश्चात विश्वशांति हेतु हवन की पवित्र
प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2003 (संयुक्तांक )
.100