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________________ वृक्ष आदि हैं। भगवान् गंधकटी में स्थित सिंहासन पर कमल होता है, उस कमल के चार अंगुल ऊपर अंतरिक्ष में श्री जिनेन्द्रदेव विराजमान रहते हैं। यह गंधकुटी और कमल भी प्रकृति की श्रेष्ठ-प्रस्तुति का प्रतीक है। . . ___केवलज्ञान' के दस अतिशयों में 100 योजन तक सुभिक्ष होना तथा बिना ऋतुओं के फल और फूल वृक्षों में आ जाना भी पर्यावरण की परम-शुद्धि के द्योतक हैं। . 3. चौबीस तीर्थंकरों के प्रतीक चिहन और पर्यावरण : तीर्थकरों के प्रतीक-चिह्न, पर्यावरण-संरक्षण के रहस्य को अपने में समेटे हुए हैं। जैनश्रमणों/मुनियों/तीर्थकरों की दिगम्बर-मुद्रा प्रकृति और परिस्थितिकी की मूल-अवधारणा से जुड़ा हुआ है। जैसे प्रकृति में कोई आवरण नहीं, इसीप्रकार प्रकृतस्थ-जीवन भी आवरणरहित होता है। अतएव तीर्थंकरों ने प्रकृति, वन्य-पशु और वनस्पति-जगत् के प्रतीक-चिह्नों से अपनी पहचान को जोड़ दिया। इनमें बारह थलचर-जीव जैसेवृषभ, हाथी, घोड़ा, बंदर, गैंडा, महिष, शूकर, सेही, किरण, बकरा, सर्प और शेर हैं। इनमें शूकर प्राणियों से उत्सर्जित-मल का भक्षणकर पर्यावरण को शुद्ध रखनेवाला एक उपकारक-पशु है। सिंह को छोड़कर शेष सभी ग्यारह पशु शाकाहारी हैं, जो शाकाहार की शक्ति के संदेशवाहक हैं। चक्रवाक नभचर-प्राणी है तथा मगर, मछली और कछुआ जलचर-पंचेन्द्रिय हैं। ये जल-प्रदूषण को नष्ट करने में सहायक जल-जंतु हैं। लाल एवं नीला कमल तथा कल्पवृक्ष, वनस्पति-जगत् के प्रतिनिधि हैं। इनमें कमल सुरभित-पुष्प है, जो वायुमण्डल एवं पर्यावरण को न केवल सौन्दर्य प्रदान करते हैं, वरन् महकाते भी हैं। इसके अलावा स्वस्तिक-चिह्न, वज्रदण्ड, मंगल-कलश, शंख और अर्धचन्द्र सभी मानव-कल्याण की कामना के प्रतीक हैं। इसप्रकार ये चौबीस चिह्न किसी न किसी अर्थ में प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े हुए हैं। 4. 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' बनाम पर्यावरण : आचार्य उमास्वामी ने 'तत्त्वार्थसूत्र' नामक ग्रन्थ में एक सूत्र दिया— “परस्परोपग्रहो जीवानाम्" (5/21) परस्पर में एक-दूसरे की सहायता करना जीवों का उपकार है। लोक में निरपेक्ष कोई नहीं रह सकता है। एक बालक बड़ा होकर जो उपलब्धियाँ प्राप्त करता है, इसमें उसकी योग्यता/आत्मपुरुषार्थ के साथ-साथ माता-पिता, समाज, गुरु, सत्संगति, राज्यशासन एवं पर्यावरण आदि अनेक साधन उपकारक बनते हैं। हर एक व्यक्ति पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण-शक्ति से भी जुड़ा है। अन्यान्य-ग्रहों की अदृश्य-शक्तियों से प्रभावशाली रहता है। उसके अस्तित्व की डोर–धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गलद्रव्य के उपकारक-हाथों में भी सौंपी हुई है। पर्यावरण का संतुलन और प्रकृति का संदेश भी, एक प्राणी को दूसरे प्राणी का उपकारक बने रहने का है, जैसे मनुष्यों व प्राणियों द्वारा त्याज्य अशुद्ध हवा (कार्बनडाइआक्साइड) वनस्पति-जगत् के लिये ग्राह्य-प्राणवायु है और प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002 बर 2002 1093
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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