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छात्रावास में वे रहते थे, वहाँ भी उन्होंने विभिन्न प्रकार के पौधे देखे। एंट्रेंस के बाद वह कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज में अध्ययन के लिए गए। उन्होंने विज्ञान-विषय का अध्ययन किया और भौतिकशास्त्र के अध्यापक फादर लेफंट के प्रिय-शिष्य बन गए।
इसके बाद 1880 ई. में ऊँची-शिक्षा के लिए जगदीश चंद्र बसु इंग्लैंड गए और वहाँ विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उन्होंने भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान और वनस्पतिविज्ञान का अध्ययन किया। पहले वर्ष में अच्छे अंकों से पास जरूर हुए, लेकिन दूसरे वर्ष कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की टेस्ट-परीक्षा में उत्तीर्ण होकर वह विश्वविख्यात क्राइस्ट चर्च कॉलेज में विशुद्ध विज्ञान के विद्यार्थी बन गए। अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने अध्यापकों को बहुत प्रभावित किया। ____1884 में लंदन विश्वविद्यालय से परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन स्थितियाँ जगदीश चंद्र के अनुकूल नहीं थी। भौतिकशास्त्र तथा वनस्पतिविज्ञान पर अनुसंधान करने की इच्छा के बावजूद, घर की आर्थिक स्थिति के कारण जगदीश चंद्र प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में भौतिकशास्त्र के स्थायी प्रोफेसर नियुक्त किए गए। यहाँ उन्होंने मेहनत और आत्मविश्वास के साथ 1915 ई. तक कार्य किया। भौतिकविज्ञान में जगदीश चंद्र की विशेष-रुचि थी। सन् 1894 में वह विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के ध्रुवीकरण की महत्त्वपूर्ण-खोज में सफल हुए। उनके रेडिएटर से 75 फीट की दूरी पर तीन दीवारों को पार करके तरंगें रिसीवर तक पहुँची, जिससे पिस्तौल दागी गई और घंटी बज उठी। ऐसी खोज पहले दुनिया में किसी ने नहीं की थी। अपने मंद रेडिएटर से यह उल्लेखनीय प्रयोग करने के लिए बसु ने आधुनिक वायरलैस-टेलीग्राफी के एंटीना की रूपरेखा सोच ली। यह 2 फीट लम्बे खम्भे के ऊपर एक गोलाकार धातु की तश्तरी थी, जिसे रेडिएटर के साथ जोड़ा गया और इसीप्रकार की एक तश्तरी रिसीवर से जोड़ी गई थी। इस खोज के लिए 1896 में उन्हें डी.एस.सी. की उपाधि से सम्मानित किया गया।
जगदीश चंद्र बसु ने अपने दिमाग और मेहनत से अनेक ऐसे यंत्रों का निर्माण किया, जो हर्ट्ज की लम्बी रेडियो-तरंगों से कहीं छोटे-विकिरण को दर्ज कर सकते थे। खासकर उन्होंने सिद्ध किया कि छोटी विद्युत-चुम्बकीय-लहरें प्रकाश के एक पुंज की तरह व्यवहार करती हैं और ये दोनों ही परावर्तन' और 'वर्तन' के नियमों पर चलती हैं। वह विद्युत-चुम्बकीय लहरों को धुवित करने में भी सफल हो गए, जिससे वह प्रकाश-किरणों से उनकी समानता प्रदर्शित कर सके। सन् 1898 तक आते-आते जगदीश चंद्र बसु विश्वभर में प्रसिद्ध हो गए।
सन् 1898 से बसु ने वृक्षों और धातुओं में जीव की खोज का कार्य शुरू किया और यंत्र का निर्माण करके इसे सिद्ध करके दिखाया। उन्होंने पशु तथा विशेषकर पेड़-पौधों पर इतना गहन अध्ययन किया कि वैज्ञानिक उसका मूल्यांकन नहीं कर सके । बसु ने
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002