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________________ श्रमण-परम्परा के आचार्य श्रमण-परम्परा में पंच-परमेष्ठी के रूप में जिन आचार्यों की गणना हुई है, वे मुनियों के 28 मूलगुणों के अतिरिक्त जो आचार्य-परमेष्ठी के 36 गुणों से समन्वित संघनायक होते हैं, ऐसे संघपति 'आचार्य' कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त संघ में ज्योतिष आदि विविध-विषयों के विशेषज्ञ आचार्य भी होते हैं, जिन्हें उनके विषयों के अनुसार 'आचार्य' कहा जाता है। इस संघीय व्यवस्था के अन्य-आचार्यों को 'आचार्य-परमेष्ठी' के रूप में मान्यता नहीं मिलती है। इनके साथ ही एलाचार्य, बालाचार्य और निर्यापकाचार्य का भी उल्लेख श्रमणों में मिलता है, अर्थात् ये सब भी निर्ग्रन्थ-श्रमण ही होते हैं; किन्तु ये आचार्य-परमेष्ठी के रूप में परिगणित नहीं है। इनका संक्षिप्त शास्त्रीय-परिचय निम्नानुसार है'एलाचार्य' का लक्षण अनुगुरो: पश्चाद्दिशति विधत्ते चरणक्रममित्यनुदिक् एलाचार्यस्तस्मै विधिना। -(भगवती आराधना/मूल 177/395) अर्थात् गुरु के पश्चात् जो मुनि चारित्र का क्रम मुनि और आर्यिकादिकों को कहता है, उसको 'अनुदिश' अर्थात् ‘एलाचार्य' कहते हैं। 'बालाचार्य का लक्षण कालं संभाविदा सव्वगणमणदिसं च बाहरियं । सोम-तिहि-करण-णक्खत्त-विलग्गे मंगलागासे ।। गच्छाणुपालणत्यं आहोइय अत्तगुणसमं भिक्खू। तो तम्मि गणविसग्गं अप्पकहाए कुणदि धोरो।। _ -(भगवती आराधना/मूल 273-274) अर्थात् अपनी आयु अभी कितनी रही है? –इसका विचारकर तदनन्तर अपने शिष्य-समुदाय को अपने स्थान में जिसकी स्थापना की है, ऐसे बालाचार्य को बुलाकर सौम्य-तिथि, करण, नक्षत्र और लग्न के समय शुभ-प्रदेश में, अपने गुण के समान जिसके गुण हैं, ऐसे वे बालाचार्य अपने गच्छ का पालन करने के योग्य हैं —ऐसा विचारकर उस पर अपने गण को विसर्जित करते हैं अर्थात् अपना पद छोड़कर सम्पूर्ण-गण को बालाचार्य के लिए छोड़ देते हैं। अर्थात् बालाचार्य ही यहाँ से उस गण (संघ) का आचार्य समझा जाता है। उस समय पूर्व-आचार्य उस बालाचार्य को थोड़ा-सा उपदेश भी देते हैं। 'निर्यापकाचार्य का लक्षण समाधिमरण-प्रसंग में जो मददगार होते हैं, या छिन्न-संयम का शोधन करके जो छेदोपस्थापक होते हैं, उन्हें 'निर्यापक' कहते हैं। निर्यापन में जो अनुभवी या प्रधान होते हैं उन्हें 'निर्यापकाचार्य' कहते हैं। 00 70 प्राकृतविद्या + अक्तूबर-दिसम्बर '2002
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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