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रोहतक से प्राप्त अप्रकाशित जैन मूर्तियाँ
-डॉ. सत देव 'रोहतक' हरियाणा का एक प्राचीन नगर है, जो दिल्ली के पश्चिम में 70 किलोमीटर की दूरी पर (28' 54' उत्तरी अक्षांश तथा 75135' पूर्वी देशान्तर) पर स्थित है। यह नगर साहित्य व पुरातात्त्विक दृष्टिकोण से पर्याप्त-प्राचीन है। इसका उल्लेख सर्वप्रथम पंचविंश ब्राह्मण'2 में हुआ है। इसमें रोहतक नाम से मिलता-जुलता रोहत-कूल' शब्द का प्रयोग हुआ है। महाभारत में इसका रोहितक' के नाम से वर्णन मिलता है। महाभारतकार के अनुसार 'रोहिताकारण्य' वह वन था, जो कुरु-सेना से घिरा हुआ था तथा दिग्विजय के समय कर्ण ने रोहितक का दमन किया था।
जैन-साहित्य में वर्णित रोहिद' नगर की पहचान रोहतक से की जाती है। परम्परा के अनुसार यहाँ के एक उद्यान में धर्मयक्ष की पजा का स्थल था तथा तीर्थंकर महावीर ने कई बार इस नगर की यात्रा की थी।
प्राचीन रोहतक का एक अन्य नाम 'बहुधान्यक' भी था। यह नाम रोहतक से बहुसंख्या में प्राप्त यौधेयों के सिक्कों पर मिलता है। वासुदेवशरण अग्रवाल ने रोहितक-बहुधान्यक भू-भाग की 'संध्यधानक' जनपद से पहचान की है, जिसका उल्लेख 'वामन पुराण' में उत्तरापथ के जनपदों की सूची में आया है।
बौद्ध-साहित्य में रोहतक की गणना उत्तरी भारत के प्रमुख नगरों में की गई है। विनयपिटक' में बद्ध की एक लम्बी यात्रा का वर्णन है। इसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का दिव्य-मूर्ति-शिल्प
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002