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चउबीस-तित्ययर-धुदि
-मूल लेखक - कविवर विबुध श्रीधर -अनुवाद - प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन
घत्ता- पूरिय भुअणासहो पाव-पणासहो णिरुवम गुणमणिगण-भरिउ।
तोडिय भवपासहो पणविवि पासहो पुणु पयडमि तासु जि चरिउ ।। जय 'रिसह' परीसह-सहणसील, जय 'अजिय' परज्जिय पर दुसील।। जय 'संभव भव-भंजण समत्थ, जय संवर-णिव-णंदण समत्थ ।। जय ‘सुमई' समज्जिय सुमइ-पोम, जय ‘पउमप्पह' पह-पहय-पोम ।। जय-जय ‘सुपासु' वसु पास णास, जय चंदप्पह-पहणिय स-णास ।। जय ‘सुविहि' सुविहि-पयडण-पवीण, जय ‘सीयल' पर-मय सप्प-वीण ।। जय 'सेयं सेय लच्छी-णिवास, जय 'वासुपुज्ज' परिहरिय-वास।। जय 'विमल' विमल-केवलपयास, जय-जय ‘अणंत' पूरिय-पयास ।। जय 'धम्म' धम्म-मग्गाणुवट्टि, जय 'संति' पाव-महि मइय वट्टि।। जय 'कुंथु' परिक्खिय कुंथु-सत्त, जय 'अर' अरिहंत-महंत सत्त।। जय मल्लि' मल्लि पुज्जिय-पहाण, जय मुणिसुव्वय' सुव्वय-णिहाण।। जय ‘णमि णमियामर-खयरविंद, जय ‘णेमि णयण णिहयारविंद।। जय 'पास' जसाहय हीर-हास, जय जयहि 'वीर' परिहरिय-हास ।। घत्ता- इय णाण-दिवायर गुण-रयणायर वित्थरंतु महु मइ-पवर ।
जिण-कब्बु-कुणंतहो दुरिउ-हणंतहो सुर-कुरंग-मारण-सवर ।। हिन्दी अनुवाद :- भुवन (तीन लोकों के जीवों) की आशा (अभिलाषा) को पूर्ण करने वाले, पापों के प्रणाशक, भव की पाश (मोह) को तोड़नेवाले श्री पार्श्वप्रभु को प्रणाम कर मैं (विबुध श्रीधर) उनके अनुपम गुणरूपी मणिगण (रत्नसमूह) से भरे हुए चरित्र को प्रकट करता हूँ।।
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प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002