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प्रेरक व्यक्तित्व अजातशत्रु भैय्या मिश्रीलाल गंगवाल
-डॉ. कपूरचंद जैन एवं डॉ. ज्योति जैन
तत्कालीन मध्य भारत (अब मध्यप्रदेश) के मुख्यमंत्री रहे, 'मालवा के गाँधी' नाम से विख्यात, अपने स्नेहिल व्यवहार से 'भैय्याजी' उपनाम से प्रसिद्ध, नैतिक मूल्यों के देवदूत, महावीर ट्रस्ट के पितृपुरुष, जैन-जाति-भूषण, स्वयंसेवक-रत्न, जैनवीर, जैनरत्न जैसी उपाधियों के धारक श्री मिश्रीलाल गंगवाल, सुपुत्र श्री बालचंद गंगवाल का जन्म देवास (म.प्र.) के 'सोनकच्छ' गांव में 7 अक्टूबर, 1902 को हुआ। 5 वर्ष की आयु में आप मातृविहीन हो गये। ___ 14 वर्ष की अल्पवय में भैय्याजी ने 'विद्यार्थी सहायक समिति' के सभापति के रूप में सार्वजनिक-सेवा-कार्य की दीक्षा ली। 1918 में 'अखिल भरतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन', इन्दौर के स्वयंसेवक बने। 1931 में खादी प्रदर्शनी के प्रमुख कार्यकर्ता के रूप में तथा 1938 में पूज्य बापू के सभापतित्व में आयोजित 'अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन', इन्दौर के अर्थमंत्री के रूप में आपकी सेवाएँ सराहनीय रहीं।
गंगवाल जी ने 1939 में इन्दौर राज्य प्रजामण्डल द्वारा नवीन-टैक्स-विरोधी (इन्दौर नगर में आयोजित 9 दिनों की हड़ताल के अवसर पर) हड़ताल-संचालन-समिति के तृतीय डायरेक्टर के रूप में सत्याग्रह-जत्थे का नेतृत्व किया। 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन के संदर्भ में खण्डवा, हरदा, इटारसी, होशंगाबाद, ललितपुर व झांसी की यात्रा की तथा झांसी जेल में तीन माह का कारावास भोगा। 19 अगस्त 1942 को उत्तरदायित्वपूर्ण शासन प्राप्त करने के लिए इन्दौर-राज्य-मण्डल के आह्वान पर संगठित-सत्याग्रह-आन्दोलन में गिरफ्तार हुए और 15 माह के कठोर कारावास की सजा पाई। 23 मई, 1947 को पुनः सत्याग्रह करते हुए गिरफ्तार कर लिये गये और 1 माह के कारावास की सजा भोगी।
1945 में रामपुरा में सम्पन्न हुए इन्दौर-राज्य-प्रजामण्डल-अधिवेशन में आप अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। 1956 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की ओर से असम
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002
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