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________________ जानेवाली उर्दू-हिंदी-हिंदुस्तानी का संगम इस क्षेत्र का एक विशेष चेहरा प्रस्तुत करता है। कोलकाता से आए पत्रकार पलाश चंद्र विश्वास ने कहा कि भारतीय भाषाओं के प्रति दुराग्रह और अंग्रेजी मोह के चलते राष्ट्रभाषा और राजभाषा की राजनीति से कमाने-खाने वाले लोग हिंदी को अलग-थलग करने में जुटे हैं। जबकि इतिहास और वर्तमान हिंदी से भारतीय भाषाओं के अटूट और सुखद-दाम्पत्य को ही रेखांकित करते हैं। इस सत्र की अध्यक्षता आलोक राय ने की। –सम्पादक ** "मध्यप्रदेश की जैन विरासत' पर प्रदर्शनी आयोजित मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल' में दिनांक 17 से 25 अक्तूबर 2002 तक राज्य सरकार की ओर से स्थानीय ‘राज्य संग्रहालय' में पुरातत्त्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय म. प्र. के आयुक्त की ओर से एक विशाल एवं गरिमापूर्ण प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें मध्यप्रदेश की जैन विरासत' की गौरवपूर्ण प्रस्तुति की गयी। इस अवसर पर एक परिचयात्मक लघुपुस्तिका भी प्रकाशित की गयी। इस समस्त आयोजन के सूत्रधार धर्मानुरागी श्री डॉ. सुरेश जैन, आई.ए.एस. भोपाल रहे, जिनकी निष्ठा, लगन एवं समर्पण से यह अनुकरणीय आयोजन सम्पन्न हो सका। –सम्पादक** प्राकृत-मनीषी डॉ. के.आर. चन्द्रा नहीं रहे वयोवृद्ध प्राकृतमनीषी एवं यावज्जीवन प्राकृत-अध्ययन अनुसंधान-लेखन एवं सम्पादन में संलग्न रहे विद्वद्वर्य डॉ. के.आर. चन्द्रा, अहमदाबाद (गुज.) का अक्तूबर 2002 के प्रथम सप्ताह में देहावसान हो गया है। इसी श्रुतपंचमी को उन्हें पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी की पावन-सन्निधि में शौरसेनी प्राकृतभाषा-साहित्य-विषयक 'आचार्य विद्यानन्द पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। 'प्राकृतविद्या' परिवार की ओर से दिवंगत आत्मा को सुगतिगमन, एवं बोधिलाभ की मंगलकामना के साथ विनम्र श्रद्धासुमन समर्पित हैं। –सम्पादक ** मनीषी-प्रवर पं. अमृत लाल जी जैन दिवंगत वयोवृद्ध जैनमनीषी एवं संस्कृत-प्राकृत आदि भाषाओं के विशिष्ट विद्वान् पं. अमृतलाल जी जैन वाराणसी का दिनांक 8 नवम्बर 2002, को देहावसान हो गया। संस्कृत काव्य-रचना में सिद्धहस्त विद्वद्वर्य पं. अमृतलाल जी संस्कृत के आशुकवि के रूप में विख्यात थे, तथा वाराणसी के विद्वानों के बीच आपकी विशिष्ट गरिमा थी। जैनसमाज की अतुलनीय सेवा करनेवाले पं. जी साहब यावज्जीवन सादगी की मूर्ति बनकर धर्मप्रभावना करते रहे। 'प्राकृतविद्या' परिवार की ओर से दिवंगत भव्य-आत्मा को सुगतिगमन, एवं बोधिलाभ की मंगलकामना के साथ विनम्र श्रद्धासुमन समर्पित हैं। -सम्पादक ** प्राकृतविद्या के स्वत्वाधिकारी एवं प्रकाशक श्री सुरेशचन्द्र जैन, मंत्री, श्री कुन्दकुन्द भारती, 18-बी, स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली-110067 द्वारा प्रकाशित; एवं मुद्रक श्री महेन्द्र कुमार जैन द्वारा, मै. घूमीमल विशालचंद के मार्फत प्रम प्रिंटिंग वर्क्स चूड़ीवालान, चावड़ी बाजार, दिल्ली-110006 में मुद्रित। भारत सरकार पंजीयन संख्या 48869/89 00 110 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर '2002
SR No.521369
Book TitlePrakrit Vidya 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2002
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size14 MB
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