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________________ मानने से इनकार करते हैं । " सारा दरबार ठगा-सा रह गया । सिकन्दर के माथे पर बल पड़ गये। सबको लगा जैसे यमराज विक्षिप्त होकर तक्षशिला के प्रांगण में चक्कर काट रहे हैं। उसने मुट्ठियाँ भींचकर कहा, "उन्हें हमारे सामने पेश करो। " "वे साधु नंगे हैं, " उपसेनापति ने कहा, "महान् सिकन्दर की सेवा में उपस्थित किये जाने के योग्य नहीं हैं। साथ ही वे अपने स्थान से हिलने से भी इनकार करते हैं । वे कहते हैं, जिन्हें उनके दर्शन करने की इच्छा हो, वे ही उनकी सेवा में उपस्थित हों । " सभी व्यक्तियों की निगाहें सिकन्दर के मुख पर जम गयी। इस अवहेलना का केवल एक ही परिणाम होनेवाला था— हत्या, मृत्यु और विनाश । आंभी के द्विभाषिये ने उनके कान में सिकन्दर के उपसेनापति के शब्द दोहराये और वह चौंक उठा। उसने देखा कि आक्रमणकारी का चेहरा तमतमा उठा। इससे पहले कि वह क्रोध में कुछ आदेश देता, आंभी उठा और बोला, “अलक्षेन्द्र का प्रताप दिन दूना और रात चौगुना बढ़े। वे साधू, जिन्होंने अलक्षेन्द्र की अवहेलना की है, इस संसार से परे के प्राणी हैं । वे संसार के सुख-दुःख, मोह-म‍ -माया और जीवन-मरण की चिंता से दूर हैं। साथ ही वे असंख्य भारतीयों के आध्यात्मिक गुरु हैं। यदि महान् सिकन्दर ने अपने क्रोध का विद्युत् प्रहार उन पर किया, तो सारा भारत भभक उठेगा और उसके निवासी बौखला जायेंगे। मुझे पूरी आशा है कि अलक्षेन्द्र की महत्ता व्यर्थ के हत्याकांड में अपना गौरव नष्ट नहीं करेगी । " सिकन्दर ने आंभी का एक-एक शब्द सुना। देखते-देखते सूर्य के ताप में शीतलता आ गयी। उसने अपने उपसेनापति की ओर लक्ष्य करके कहा, "हम वीरों को धरती पर सुलाते हैं, कायरों को नहीं । खाली हाथ सिकन्दर का सामना करनेवाला पागल के सिवा और कुछ नहीं है। हम इस शर्त के साथ उन पागल साधुओं को माफ करते हैं कि वे हमारे हजूर में आकर हमें अपना दर्शन बतायें। उनके दर्शन से महान् अरस्तू का मनोरंजन होगा । " I अभी खतरा बिलकुल दूर नहीं हुआ था। आंभी ने कहा, "यूनानाधीश ! इस प्रकार उन साधुओं को यहाँ नहीं लाया सकता। बुद्धिबल को केवल बुद्धिबल ही परास्त कर सकता है। आप यूनान के दर्शन के किसी प्रतिनिधि को उनके पास भेजें, तो संभव है वे आ सकें। यदि उन्हें लाने के लिए किसी तरह की जोर-जबरदस्ती उनके ऊपर की गयी, तो ने इसे मानवी उपसर्ग समझकर मौन धारण कर लेंगे और फिर उनकी जुबान नरक की यातना भी नहीं खुलवा सकेगी।" सिकन्दर के दायें-बायें परडीकस, सैल्यूकस, फिलिप और नियारकस जैसे शक्तिशाली सामंत और सेनापति सीना ताने खड़े थे । आसपास इधर-उधर यूनान की अतुल - शक्ति के ये प्रतीक सिकन्दर की महत्ता और उसके अधिकार की घोषणा कर रहे थे। वह हँसा । "महाराज आर्मीस ! यूनान बुद्धिबल में भी संसार के नेता हैं," वह एक यूनानी सामंत की ओर घूमा । "ओनेसिक्राइटस ! तुम महाराज आर्मीस के साथ जाकर उन साधुओं को प्राकृतविद्या�अक्तूबर-दिसम्बर 2001 O 54
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
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