SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौरव-ग्रन्थ 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' ‘मोक्षमार्ग प्रकाशक' पण्डितजी का स्वतन्त्र ग्रन्थ होते हुए भी जैन - वाङ्मय का सारभूत है। इन सबके बावजूद आचार-विचार में व्याप्त शिथिलता, ढोंग, पाखण्ड आदि की तीव्र आलोचना एवं जैन सिद्धान्तों तथा दर्शन पर व्यर्थ के लगाये गये लांछनों का समुचित उत्तर उसमें दिया गया है। यह ग्रन्थ लिखते समय इनसे प्रश्न किया गया कि पूर्वाचार्यों के बड़े-बड़े ग्रन्थ उपलब्ध हैं ही, फिर इस ग्रन्थ के लिखने की क्या आवश्यकता ? उसके उत्तर में पण्डितजी ने कहा है कि पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों को समझने के लिये प्रखर बुद्धि एवं भाषा, व्याकरण, न्याय, छन्द, अलंकार आदि का ज्ञान आवश्यक है। जो ऐसे हैं, वे उन्हें पढ़ सकते हैं; किन्तु जो अल्पबुद्धि हैं, उनका प्रवेश उन ग्रंथों में सम्भव नहीं । अत: उन्हीं मन्दमति सामान्यजनों के हितार्थ यह ग्रन्थ लिखा जा रहा है।' 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' में कु नौ अधिकार हैं और उनके लिखने के लिये उन्हें श्वेताम्बर एवं दिगम्बर जैनागम, अनुआगम, वैदिक, बौद्धि, इस्लाम प्रभृति सम्प्रदाय के ग्रंथों का अध्ययन करना पड़ा था । प्राप्त सन्दर्भों के अनुसार उनकी वर्गीकृत सूची निम्न प्रकार है : वैदिक धर्म ग्रन्थ 1. ऋग्वेद 2. यजुर्वेद 3. छान्दोग्योपनिषद् 4. मुण्डकोपनिषद् 5. कठोपनिषद् 6. विष्णुपुराण 7. वायुपुराण 8. मत्स्यपुराण 9. ब्रह्मपुराण 10. गणेशपुराण 11. प्रभासपुराण 12. नगरपुराण ( भवावतार रहस्य ) 13. काशीखण्ड 14. मनुस्मृति 15. महाभारत 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' में 16. हनुमन्नाटक 17. दशावतार - चरित्र 'प्राकृतविद्या + अक्तूबर-दिसम्बर '2001 प्रयुक्त सन्दर्भ-: - ग्रन्थ : (मोक्षमार्ग प्रकाशक के पृ० 208 ) 208, 209 139 139 139 148, 163 148 149 163 205 206 207 206 208 210 204 206 43
SR No.521367
Book TitlePrakrit Vidya 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Prakrit Vidya, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy